Month: January 2022

  • विविधता – परंपरा में व आधुनिकता में : भाग १/२

    राग एक, अदायगी अनेक। पेड़ की प्रजाति एक, परंतु फिर भी उसी प्रजाति के दो पेड़ एक जैसे नहीं। सब अपनी अपनी छटा, अपनी विशिष्टता लिए हुए, पर मूल में एक, उसमें समानता। विविधता को परंपरा में, भारतीय दृष्टि में, संभवतः ऐसे ही देखा गया है। मूल में नियम बसे होते हैं, जो निराकार, अगोचर…

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  • ‘आधुनिक भारत’: एक विरोधाभास

     भारत में ही भारत के भारतीयों द्वारा विस्थापन की स्थिति में ७० वर्ष से नये बन रहे ‘आधुनिक’ भारत में क्या आपको अपनी आत्मछबि दिख रही है? अधिकतर भारतवासियों को अपनी छवि नहीं दिखती। इसी स्थिति को समझने के लिए हमें इस सवाल का सामना करना जरूरी है, कि हमारे आर्थिक, राजनैतिक, बौद्धिक – शैक्षिक – सांस्कृतिक और औद्योगिक जीवन में जिसे हम ‘अपना’,…

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  • आधारभूत से निराधार राष्ट्र की ओर

    राष्ट्रीय  नवरचना, ‘विकास’ और ‘प्रगति’ की राह पर चल पड़ने पर  सभ्यता  और संस्कृति के सवाल खड़े होने न केवल स्वाभाविक है; अगर  खड़े न हो तो समझना चाहिए, कि कुछ भारी गड़बड़ है। आजादी का आंदोलन जब उस दौर में पहुंच गया, जहाँ आजादी आने के बाद देश की नवरचना के विषय में  गंभीरता से निर्णयात्मक रूप से सोचना जरूरी हो गया, तब  यही…

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  • BHARATHIYA – NON-TRANSLATABLE WORDS: PART 14 – 2

    111. Aushadha: This word Aushadhi is derived from the word Oshadhi which means ‘medicinal herb’. This word is generally employed for all medicines especially of vegetable origin. According to Charaka – Samhita (Sutra. 26, Ch. 12), there is no substance in the world which does not have some medicinal use or the other, but one must consider…

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  • बड़े भैया, केदारा गाइये

    लेखक – किशनसिंह चावडा (जिप्सी)किताब – अंधेरी रात के तारे एकादशी और पूर्णिमा के दिन मैं पिताजी के साथ गुरुद्वारे जाया करता था। शाम को भजन होता था। मेरी उम्र उस समय चौदह-पन्द्रह वर्ष की रही होगी। भजन में गुरु महाराज खुद मृदंग बजाते थे। पिताजी करताल बजाते और गिरधर चाचा झाँझ बजाने में सिद्धहस्त…

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