Author: Pawan Gupta
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अंधेरी रात के तारे के पुनर्मुद्रण की प्रस्तावना
खुशकिस्मत हूँ मैं। कृपा है कहीं से कि जीवन में अद्भुत और जिनके प्रति स्वतः श्रद्धा पैदा हो, ऐसे लोगों से बगैर ज़्यादा कोशिश किए, मिलना हुआ और इतना ही नहीं, उनसे घरेलू संबंध बने। इनमें से एक धरमपाल जी थे और उनके मारफ़त “गुरुजी” रवीन्द्र शर्मा के बारे में पता चला। पहली ही मुलाक़ात…
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विविधता – परंपरा में व आधुनिकता में : भाग २/२
आज की आधुनिकता की बुनियाद शाश्वत सत्य पर नहीं खड़ी है। इतना ही नहीं, आज की आधुनिकता में तो सत्य की शाश्वतता को ही नकार दिया गया है। ‘सब का अपना अपना सत्य होता है’ को शाश्वत सत्य की तरह स्थापित कर दिया गया है। सबकी अपनी अपनी पसंद / ना-पसंद होती है; सबका अपना…
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विविधता – परंपरा में व आधुनिकता में : भाग १/२
राग एक, अदायगी अनेक। पेड़ की प्रजाति एक, परंतु फिर भी उसी प्रजाति के दो पेड़ एक जैसे नहीं। सब अपनी अपनी छटा, अपनी विशिष्टता लिए हुए, पर मूल में एक, उसमें समानता। विविधता को परंपरा में, भारतीय दृष्टि में, संभवतः ऐसे ही देखा गया है। मूल में नियम बसे होते हैं, जो निराकार, अगोचर…
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Nothing Exists in Isolation – (2/2)
From the human perspective, Existence, whatever there is – both the sensorial and that which are beyond senses (thoughts, feelings, imagination, desires etc) consists of the Known and the Unknown – two domains. This is true, both at the micro or individual level, as well as at the macro or collective level. Any new discovery,…
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Nothing Exists in Isolation – 1
I grew up as a non-believer, an atheist. However, when I started working in the rural area in India, and developed some sort of relationship with the villagers, I began to appreciate their innate goodness, the values that they lived by in their everyday lives, and how easy and natural it was for them to…
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अर्थ से शब्द की ओर (३/३)
भाग – २ पढ़ने के लिए यहाँ click करें। स्थानीय परिवेश से शिक्षण के हमारे प्रयोग से हमने पाया, कि बच्चे पढ़ा – लिखा होने और शिक्षित होने के भेद को समझ पाये। उनके बुजुर्ग – जिनको वे अनपढ़ होने की वजह से, एक तरफ उन्हें तिरस्कार की नज़र से देखते थे और दूसरी तरफ…
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अर्थ से शब्द की ओर (२/३)
भाग – १ पढ़ने के लिए यहाँ click करें। हमारी ग्रामीण महिलाएँ इसी बीमारी को या इसी दोष को अपने अंदाज़ में हमें बता रही थी, जब उन्होंने कहा “उन्हें होना सिखाओ, दिखना/ दिखाना नहीं”। हमारे लिए तो यह एक मंत्र भी और सूत्र भी जैसा बन गया, जिसने आगे की हर दिशा का मार्गदर्शन…
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अर्थ से शब्द की ओर (१/३)
आज से करीब 30 वर्ष पहले पहाड़ के दूर दराज़ के गाँवों में, गाँव के लोगों के अनुरोध पर, हमने स्कूल खोले। उस समय औसतन 7-10 गाँवों के बीच एक सरकारी स्कूल हुआ करता था। पहाड़ के गाँव छोटे- छोटे और बिखरे हुए होते हैं। एक गाँव से दूसरे गाँव की दूरी तय करने में…
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धरमपाल जी की चिंता: सहजता और आत्म विश्वास कैसे लौटे
यह धरमपाल जी का शताब्दी वर्ष है। जगह जगह छोटे बड़े कार्यक्रम हो रहे हैं। अभी 19 तारीख को धर्मपाल जी के जन्मदिवस पर प्रधानमंत्री ने शांति निकेतन, बंगाल में दिये अपने एक भाषण में शिवाजी जयंती (जो उसी दिन पड़ती है) के साथ धर्मपाल जी के शोध का कुछ विस्तार से ज़िक्र भी किया।…
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भारत का आत्म-संकोच
हमारा देश आत्म-संकोची हो गया है। हम लोग खुल कर अपने अंदर की बात आसानी से नहीं कर पाते। जिस माहौल में होते हैं, वहाँ के मुहावरे और वहाँ जो चलता है, उसका अनुमान पहले लगाते हैं, हिसाब- किताब लगाते हैं और फिर बोलते हैं। इसे भले ही कुछ लोग समझदारी कहें, पर इसमे डर…