Category: Hindi Articles

  • जीवन राजनीति ही है?

    मानव जीवन तीन प्रकार के सम्बन्धों में विस्तृत है। या यह भी कह सकते हैं, कि बंधा हुआ है: मनुष्य का अन्य मनुष्यों से सम्बन्ध; मनुष्य का प्राकृतिक विश्व के साथ सम्बन्ध और मनुष्य का परम तत्त्व – ईश्वर के साथ सम्बन्ध। तीन रिश्ते सम्पूर्ण रूप से एक दूसरे से स्वतंत्र नहीं हैं, क्योंकि तीसरा…

    CLICK HERE TO READ MORE

  • परंपरा और विज्ञान – (भाग २/२)

    आधुनिक (पाश्चात्य) विज्ञान विकासशील विज्ञान है, जो किसी प्रस्थापित तथ्य को गलत सिद्ध करके नया तथ्य प्रस्थापित करता है, हो सकता है, उसी तथ्य को कुछ समय बाद गलत सिद्ध करके किसी और तथ्य को प्रस्थापित किया जाए। अर्थात् आधुनिक विज्ञान सतत परिवर्तनशील है। आज हमारे यहाँ जितना भी परंपराओं के दस्तावेजीकरण का कार्य चल…

    CLICK HERE TO READ MORE

  • परंपरा और विज्ञान – (भाग १/2)

    अभी कुछ दिन पहले ही नवगठित मध्यप्रदेश जन अभियान परिषद की राज्य स्तरीय सलाहकार समिति की प्रथम बैठक एक कार्यशाला के रूप में सम्पन्न हुई। बैठक और कार्यशाला का मुख्य विषय ‘पारम्परिक एवं देशज ज्ञान-विज्ञान का चिन्हीकरण और दस्तावेजीकरण’ था। श्री आशीष कुमार गुप्ता जी के विचार बैठक में प्रस्तुत लोगों को विशेष रूप से…

    CLICK HERE TO READ MORE

  • दो पहलू

    कभी कभी आपको कुछ छोटे छोटे अनुभव बहुत कुछ बता जाते हैं। कुछ किस्से लोगों के मन मस्तिष्क में चल रहे विचारों की गाथा सुना जाते हैं। स्व. किशनसिंह चावड़ा जब एक बार ट्रेन से अहमदाबाद से वडोदरा जा रहे थे, तब उन्हें दो अनूठे अनुभव हुए, जो नीतिमत्ता के दो पहलुओं को मुखर कर…

    CLICK HERE TO READ MORE

  • १. सृजन महोत्सव और २. मस्त शिल्पी

    १. सृजन महोत्सव बहुत वर्ष पहले की बात है। बैसाख महीना था। उस आग बरसाती गरमी में श्री नंदलाल बोस शांतिनिकेतन से बड़ौदा आये थे। साथ में उनके शिष्य कलाकारों का समुदाय था। सयाजीराव महाराज के कीर्तिमंदिर की पूर्व की दीवार पर भित्तिचित्र का निर्माण करना था। कीर्तिमंदिर के पिछवाड़े एक छोटे से कमरे में…

    CLICK HERE TO READ MORE

  • ‘अनुपम’ अनुपम का जीवन वृतांत

    ‘अनुपम’ अनुपम का जीवन वृतांत

    “ईश्वर से जो कुछ मांगो, सावधानी से मांगना चाहिए,” अनुपम मिश्र कहा करते थे। “जो आप मांगो वह बहुत बार मिल भी जाता है, लेकिन फिर यह आभास भी होता है कि जो मांगा वह पर्याप्त नहीं था। धन–दौलत और सफलता मांगने से, मेहनत करने से, मिल भी जाती है; फिर उसकी तुच्छता का एहसास…

    CLICK HERE TO READ MORE

  • गंगा के घाट पर

    एक दिन प्रेमचंदजी, प्रसाद और मैं मणिकर्णिका घाट से नाव में बैठने जा रहे थे, कि पास में ही कहीं से मृदंग पर सधे हुए हाथ की थाप सुनाई दी। मैंने बिनती की, कि कुछ देर रुक कर सुना जाय। हम घाट पर वापस लौटे और जिस ओर से मृदंग की ध्वनि आ रही थी…

    CLICK HERE TO READ MORE

  • अंधेरी रात के तारे के पुनर्मुद्रण की प्रस्तावना

    खुशकिस्मत हूँ मैं। कृपा है कहीं से कि जीवन में अद्भुत और जिनके प्रति स्वतः श्रद्धा पैदा हो, ऐसे लोगों से बगैर ज़्यादा कोशिश किए, मिलना हुआ और इतना ही नहीं, उनसे घरेलू संबंध बने। इनमें से एक धरमपाल जी थे और उनके मारफ़त “गुरुजी” रवीन्द्र शर्मा के बारे में पता चला। पहली ही मुलाक़ात…

    CLICK HERE TO READ MORE

  • विविधता – परंपरा में व आधुनिकता में : भाग २/२

    आज की आधुनिकता की बुनियाद शाश्वत सत्य पर नहीं खड़ी है। इतना ही नहीं, आज की आधुनिकता में तो सत्य की शाश्वतता को ही नकार दिया गया है। ‘सब का अपना अपना सत्य होता है’ को शाश्वत सत्य की तरह स्थापित कर दिया गया है। सबकी अपनी अपनी पसंद / ना-पसंद होती है; सबका अपना…

    CLICK HERE TO READ MORE

  • विविधता – परंपरा में व आधुनिकता में : भाग १/२

    राग एक, अदायगी अनेक। पेड़ की प्रजाति एक, परंतु फिर भी उसी प्रजाति के दो पेड़ एक जैसे नहीं। सब अपनी अपनी छटा, अपनी विशिष्टता लिए हुए, पर मूल में एक, उसमें समानता। विविधता को परंपरा में, भारतीय दृष्टि में, संभवतः ऐसे ही देखा गया है। मूल में नियम बसे होते हैं, जो निराकार, अगोचर…

    CLICK HERE TO READ MORE