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भाषा धर्म चेतना की वाहक
गहरे अर्थ में और अंतिम रूप से अंग्रेजी को अपना लेने का अर्थ अपने धर्म से, अपने लोगों से,अपनी विरासत से सम्बन्ध तोड़ देना है; उसे केवल औपचारिक बना देना है, क्योंकि भाषा में संस्कृति है और संस्कृति में धर्म। धर्म से संस्कृति स्वायत्त, स्वतंत्र नहीं होती। इस्लामिक शासन और यूरोपीय सेक्युलराइज़ेशन के परिणाम स्वरूप संस्कृति (भाषा, विचार और आचार के तरीके और मान्यताएँ) धर्म से स्वतंत्र हो जाने से धर्म का क्षेत्र समस्त जीवन और जीवन व्यवस्था होने के स्थान पर धर्म केवल निजी विषय बन कर रह गया है।
धर्म समाप्त हो गया, उसके प्रतीक रह गए कर्मकांड और उत्सवों में। यह क्षय इतना गहरा पैठा है, कि आज पढ़ा लिखा वर्ग यह कहने में गर्व महसूस करता है, कि धर्म तो मेरा निजी मामला है; संस्कृति का धर्म से क्या लेना देना? हमारा संस्कृति बोध इतना संकुचित हो गया है, कि भाषा क्या बोलने के लिए है, भाषा क्या बोलती है, भाषा का क्या धर्म है – यही हमारी समझ से परे हो गया। अंग्रेजी की बहस अधूरी ही नहीं, पक्षपात पूर्ण है, अगर इस पक्ष को नजर अंदाज कर दिया जाए। आज तक नजर अंदाज ही कर दिया गया है।
हमारी सारी भाषाएँ उन भाषाइयों की जीवन दृष्टि की गवाह है। जीवन दृष्टि उनमें बोलती है। भाषा, संस्कृति और धर्म के अन्तर्सम्बन्ध के विषय में हमारे पढ़े लिखे वर्ग की बदली, विपरीत और विद्रूप हुई दृष्टि के कारण अंग्रेजी भाषा की भारत में भूमिका को लेकर हम अँधेरे में हैं, या भ्रम पाले हुए है।
हर भाषा अपनी मातृ संस्कृति के लोगों की धर्म चेतना की वाहक होती है। इस अर्थ में वह सार्वभौमिक नहीं हो सकती, जब तक कि उसकी मातृ संस्कृति जीवन के सार्वभौमिक सिद्धांतो पर खड़ी ना हो। अंग्रेजी भाषा में “अहम् ब्रह्मास्मि” नहीं कहा जा सकता, क्योंकि यह उनकी अनुभूति नहीं है, उनके आधुनिक युग के चिंतन और विश्व दृष्टि का विषय नहीं है। हमारी पूरी सभ्यता, सनातन धर्म, जिस एक शब्द की अनुभूति से खड़े हुए हैं, वह शब्द अंग्रेजी में नहीं है और इसलिए उस शब्द की अनुभूति, उस अनुभूति की साधना; जीवन में उस मार्ग पर चलने और उस मार्ग के निर्माण के क्रम में जीवन दृष्टि की व्याख्या करने वाले समस्त प्रत्ययों के अर्थ भारतीय भाषाओं में बने हैं, जबकि अंग्रेजी में नहीं बन सकते।
अंग्रेजी में विपरीत अर्थ
ऐसे सभी प्रत्ययों, शब्दों के अर्थ अंग्रेजी में हमारे अर्थों से ठीक विपरीत है। अनेक उदाहरण में से वह देखते हैं, जिस शब्द ने भारत को अंग्रेजों की गुलामी में से नैतिक युद्ध लडकर मुक्ति दिलाई। वह वैदिक शब्द है, धर्म राज्य और रामराज्य का शास्त्रीय सार्वभौमिक शब्द ‘स्वराज’। अंग्रेजी में शब्द है फ्रीडम – स्वाधीनता, स्वतंत्रता। हमारे दिमाग में अंग्रेजी अर्थ की परत जम गई है। उस परत को साफ़ करने हेतु गांधीजी को हिन्द – स्वराज लिखनी पड़ी।
हिन्द स्वराज के द्वारा फ्रीडम का हमारा सभ्यतागत अर्थ वापिस प्राप्त करने का प्रयास किया गया है और जब फ्रीडम (स्वाधीनता, स्वतंत्रता) का यह अर्थ उठाया गया, तो भारत के लोग जाग उठे। अंग्रेजी में स्वराज शब्द को नहीं समझा जा सकता, क्योंकि स्वराज न उनका विचार है, न उनके जीवन का लक्ष्य। इसी लिए उसका गलत, उनकी अपनी समझ का अर्थ आज भी अंग्रेजी की श्रेष्ठ डिक्शनरी में दिया हुआ पाया जाता है, जिस अनुसार स्वराज का अर्थ है “भारत की स्वतंत्रता”।
स्वतंत्रता स्वराज का अर्थ होता और स्वराज से स्वतंत्रता का विपरीत अर्थ न होता, तो गांधीजी को एक पूरा लेख ही न लिखना पड़ता और नेहरूजी द्वारा कांग्रेस के प्रस्ताव में स्वराज के स्थान पर इंडिपेंडेंस, स्वातंत्र्य शब्द का प्रयोग करने पर गांधीजी को सख्त विरोध न करना पड़ता और यह न कहना पड़ता, कि तुम्हारे और मेरे विचारों में इतना जबरदस्त विसोधाभास है, कि तुम्हें मेरे विरुद्ध विद्रोह का ऐलान कर देना चाहिए।
उन्हें बताना पड़ा कि “स्वराज प्राचीन पवित्र वैदिक शब्द है, जिसका अर्थ है आत्म-नियंत्रण और आत्म-संयम, जबकि इनसे मुक्ति स्वतंत्रता – इंडिपेंडेंस का अर्थ किया जाता है।” प्रो. अवध किशोर शरण ने सटीक शब्दों में यही बात बहुत स्पष्ट रूप से कही है: “आधुनिक मानव अपनी कामना, वासना, मन के आवेग, भावना और निराधार अभिप्राय से अपनी सम्पूर्ण दासता को फ्रीडम और पावर समझ बैठा है।”
कहीं भी अंग्रेजी डिक्शनरी में या आधुनिक समाज विज्ञान की पुस्तकों में स्वराज का अर्थ वह नहीं दिया गया है, जो हमारे लोग समझते हैं। वह दिया है, जो हमारे अंग्रेजी वर्ग ने सीख लिया है। भारतीय सभ्यता के मर्म को धारण करने वाले इस एक शब्द के साथ वर्तमान इतिहास में जो कुछ भी हुआ है, वह बताता है, कि एक पूरे राष्ट्र की उन्नति और अवनति एक प्रतीकात्मक, प्रेरणादायी शब्द के बदल दिए गए अंग्रेजी अर्थ से कैसे जुडी है।
इसीलिए गांधीजी ने १९२७ में कह दिया, कि अच्छा हो कांग्रेस अंग्रेजी में काम करना बंद कर दे और आजादी के बाद तो तुरंत उन्होंने घोषणा कर दी, कि “दुनिया को कह दो गांधी को अंग्रेजी नहीं आती।” क्योंकि अब उन्हें, आंदोलन के पूरे नेतृत्त्व के लिए अंग्रेजों से बात करने की जरूरत पूरी हो गई थी।
अंग्रेजी शिक्षा से दिमाग और संस्कार भरे हुए न होते, तो हम स्वराज का अर्थ धर्म राज्य के रूप में, राम राज्य के रूप में सहज ही करते, लेकिन “धर्म”, “राम”, “राम राज्य” ये अंग्रेजी संस्कृति से निकले शब्द, प्रत्यय, विचार और प्रतीक है ही नहीं, उनकी भाषा में जब ये शब्द ही नहीं हैं, तो नेहरू जी कैसे जानते कि स्वराज का अर्थ इंडिपेंडेंस नहीं होता और स्वराज शब्द को कांग्रेस की शब्दावली से निकाल बहार नहीं करते, क्योंकि अंग्रेजी संस्कृति, भाषा में तो उन्होंने यही पढ़ा लिखा सीखा था, कि रामराज्य तो कभी अच्छा था ही नहीं।
वे और उनके प्रभाव का समस्त अंग्रेजी पढ़ा वर्ग स्वराज का अर्थ ही नहीं जानते थे, फ्रीडम का भारतीय अर्थ नहीं जानते थे, न ही समझना चाहते थे, मानने की तो बात ही दूर है! इस वजह गांधीजी को हिन्द स्वराज लिखनी पड़ी यह बताने के लिए, कि फ्रीडम, स्वाधीनता को एक सामान्य भारतीय कैसे समझता है। वह उसे मुकि, मोक्ष, समस्त वासनाओं के बंधनो से मुक्ति का मार्ग सरल करने वाले राज्य के अर्थ में समझता है। एक ऐसा राज्य जो शासकों और उनके समर्थकों की इच्छा, आकांक्षा और भावना से, फ्रीडम और पॉवर के आधुनिक मनुष्य की समझ से निर्देशित नहीं, बल्कि धर्म से निर्देशित हो।
भारत की धर्मप्राण प्रजा को यह समझते देर नहीं लगी, जबकि अंग्रेजों की नक़ल में खड़ा हुआ अंग्रेजो से दीक्षित वर्ग यह नहीं समझ सका।
क्रमश:
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