जीवन में आपके समक्ष कौन कौन सी परिस्थिति उत्पन्न होगी, ये आपके अधिकार क्षेत्र से परे है, किन्तु उन परिस्थितियों को आप कौन से दृष्टिकोण से देखेंगे, ये तो आप ही निश्चित कर सकते हैं।

पढ़िए *देवालय का निर्माण* अयोध्या स्थित *आचार्य श्री मिथिलेशनन्दिनी शरण जी* की कलम से।

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पूर्वी और दक्षिणी अफ्रीका से आने वाले मेरे अनेक मित्रों से मैं वहाँ की आदिवासी वन्य जातियों के विषय में कुतूहलपूर्ण प्रश्न पूछा करता था।

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गीता प्रेस को अंतरराष्ट्रीय गांधी पुरस्कार से सम्मानित किये जाने पर सहमति और असहमति को किस परिप्रेक्ष्य में देखा जाए यह महत्त्वपूर्ण प्रश्न है। कहने

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अतीत काल में मनुष्य किसी उच्चतर नैतिक सत्ता से, जिसमें उसका विश्वास था, प्रेरित हो कर अच्छा बनने का प्रयन्त करता था; और अच्छाई के अर्थ होते थे : सत्यनिष्ठा, ईमानदारी, दयालुता, चारित्र्य, नि:स्वार्थता आदि।

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