Category: अंधेरी रात के तारे
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उजाले से अँधियारे में : भाग (२/२)
गतांक से चालू। भाग १ यहाँ पढ़ें। (२) शाम ढल चुकी थी। कृष्णपक्ष की रात का अँधेरा उतर आया था। बिजली के खम्भों की रोशनी से वह दबने को तैयार नहीं था। ठण्ड कह रही थी, कि दिल्ली में मेरा राज है, काँग्रेस का नहीं। शायद नौ बजे होंगे। पूरे शाहजहाँ रोड पर मेरे सिवा…
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उजाले से अँधियारे में : भाग (१/२)
नयी दिल्ली का अपना एक विशिष्ट व्यक्तित्व है। उस पर पंजाबी संस्कारिता की छाप है और उत्तर प्रदेश की सभ्यता का प्रभाव है। दिल्ली की अपनी परम्परागत मौलिक तहज़ीब तो उसके ताने-बाने में बुनी हुई है, परन्तु आजकल ये सारे प्रभाव तिरोहित होते जा रहे हैं और उन पर छा गया है पश्चिम की संस्कृति…
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कफनफरोश
मित्रमंडली में उनका प्यार का संक्षिप्त नाम था आर. डी., सो इस हद तक, कि उनकी पत्नी तक बातचीत में उनका उल्लेख बिना किसी संकोच के इसी नाम से करती। आदमी थे गणित के क्षेत्र के। गणित विषय लेकर एम.ए. की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की थी, लेकिन ललित कलाओं में बेहद दिलचस्पी। जीवन के प्रति अपार…
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प्रश्न और उत्तर
पूर्वी और दक्षिणी अफ्रीका से आने वाले मेरे अनेक मित्रों से मैं वहाँ की आदिवासी वन्य जातियों के विषय में कुतूहलपूर्ण प्रश्न पूछा करता था। उनके रहन-सहन, आदतें, चलन- व्यवहार, विचारसरणी, भावनाएँ आदि में मुझे गहरी दिलचस्पी थी और मैं अनेक प्रकार के प्रश्न पूछता, परंतु किसी भी मित्र ने स्वानुभव की या सुनी हुई…
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अपाहिज अंतर्निष्ठा
बहुत वर्ष पहले की बात है। अश्विन महीना था, नवरात्रि के दिन अष्टमी के रोज सुबह मैं घूमने निकला था। वर्षा के भीगे हुए दिनों के बाद शरद की भोर बड़ी सुहावनी लग रही थी। वातावरण में ताजगी थी। चौड़ी सड़क के दोनों ओर के वृक्ष मेरे परिचित थे। उनमें भी गोल चक्कर के पास…
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दो पहलू
कभी कभी आपको कुछ छोटे छोटे अनुभव बहुत कुछ बता जाते हैं। कुछ किस्से लोगों के मन मस्तिष्क में चल रहे विचारों की गाथा सुना जाते हैं। स्व. किशनसिंह चावड़ा जब एक बार ट्रेन से अहमदाबाद से वडोदरा जा रहे थे, तब उन्हें दो अनूठे अनुभव हुए, जो नीतिमत्ता के दो पहलुओं को मुखर कर…
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१. सृजन महोत्सव और २. मस्त शिल्पी
१. सृजन महोत्सव बहुत वर्ष पहले की बात है। बैसाख महीना था। उस आग बरसाती गरमी में श्री नंदलाल बोस शांतिनिकेतन से बड़ौदा आये थे। साथ में उनके शिष्य कलाकारों का समुदाय था। सयाजीराव महाराज के कीर्तिमंदिर की पूर्व की दीवार पर भित्तिचित्र का निर्माण करना था। कीर्तिमंदिर के पिछवाड़े एक छोटे से कमरे में…
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गंगा के घाट पर
एक दिन प्रेमचंदजी, प्रसाद और मैं मणिकर्णिका घाट से नाव में बैठने जा रहे थे, कि पास में ही कहीं से मृदंग पर सधे हुए हाथ की थाप सुनाई दी। मैंने बिनती की, कि कुछ देर रुक कर सुना जाय। हम घाट पर वापस लौटे और जिस ओर से मृदंग की ध्वनि आ रही थी…
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अंधेरी रात के तारे के पुनर्मुद्रण की प्रस्तावना
खुशकिस्मत हूँ मैं। कृपा है कहीं से कि जीवन में अद्भुत और जिनके प्रति स्वतः श्रद्धा पैदा हो, ऐसे लोगों से बगैर ज़्यादा कोशिश किए, मिलना हुआ और इतना ही नहीं, उनसे घरेलू संबंध बने। इनमें से एक धरमपाल जी थे और उनके मारफ़त “गुरुजी” रवीन्द्र शर्मा के बारे में पता चला। पहली ही मुलाक़ात…
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बड़े भैया, केदारा गाइये
लेखक – किशनसिंह चावडा (जिप्सी)किताब – अंधेरी रात के तारे एकादशी और पूर्णिमा के दिन मैं पिताजी के साथ गुरुद्वारे जाया करता था। शाम को भजन होता था। मेरी उम्र उस समय चौदह-पन्द्रह वर्ष की रही होगी। भजन में गुरु महाराज खुद मृदंग बजाते थे। पिताजी करताल बजाते और गिरधर चाचा झाँझ बजाने में सिद्धहस्त…