Author: Rajiv Vora
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गीता प्रेस को गांधी सम्मान : सैद्धांतिक दृष्टि
गीता प्रेस को अंतरराष्ट्रीय गांधी पुरस्कार से सम्मानित किये जाने पर सहमति और असहमति को किस परिप्रेक्ष्य में देखा जाए यह महत्त्वपूर्ण प्रश्न है। कहने वालों ने तो इसे गोडसे और सावरकर को सम्मानित करने जैसा बता दिया है, जबकि अन्य आपत्तियों में गांधीजी के कुछ कार्यों जैसे स्त्री, छुआ छूत से उनके विपरीत मत…
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भाषा का प्रश्न, भारत में अंग्रेजी : तमस की भाषा भाग (५/५)
भाग ४ पढ़ने के लिए यहाँ click करें। ‘प्रोग्रेस’ और ‘प्रोग्रेसिव’- प्रगतिवाद और प्रगतिवादी: सेकुलरिजम के अन्य साजो सरंजाम के साथ प्रोग्रेस के विचार और शास्त्र की सवारी बैठा कर अंग्रेजी की गाड़ी भारत में लायी गयी है। इसीलिए प्रोग्रेस के विचार और उसके परिणाम को समझना जरूरी है। जबसे ‘प्रोग्रेस’ का मन्त्र आया है, हमारी भाषाओं…
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भाषा का प्रश्न, भारत में अंग्रेजी : तमस की भाषा भाग (४/५)
भाग ३ पढ़ने के लिए यहाँ click करें। तमस के फैलाव की भाषा यूरोप में अपनी जरूरत के हिसाब से रेनेसां हुआ, जिसे वे enlightenment कहते हैं, लेकिन वास्तव में वो अन्धकार युग का उद्घाटन था। उसके हिसाब से जीवन दृष्टि और विश्वदृष्टि को प्रतिपादित करने वाले प्रत्ययों को ठीक विपरीत अर्थ दे दिया गया। दूसरे शब्दों…
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भाषा का प्रश्न, भारत में अंग्रेजी : तमस की भाषा भाग (३/५)
भाग २ पढ़ने के लिए यहाँ click करें। भाषा धर्म चेतना की वाहक गहरे अर्थ में और अंतिम रूप से अंग्रेजी को अपना लेने का अर्थ अपने धर्म से, अपने लोगों से,अपनी विरासत से सम्बन्ध तोड़ देना है; उसे केवल औपचारिक बना देना है, क्योंकि भाषा में संस्कृति है और संस्कृति में धर्म। धर्म से संस्कृति…
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भाषा का प्रश्न, भारत में अंग्रेजी : तमस की भाषा भाग (२/५)
भाग १ पढ़ने के लिए यहाँ click करें। भाषा केवल शब्द और व्याकरण नहीं है। भाषा के लिए शायद बेहतर शब्द बोली है: जो बोलना चाहते हैं, उससे भाषा बनती है। हमारी बोली में हमारी जीवन दृष्टि बोलती है, हमारे जीवन सिद्धांत बोलते हैं; हमारी विश्व दृष्टि बोलती है। क्या तमिल प्रजा जिसकी अपनी संस्कृति…
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भाषा का प्रश्न, भारत में अंग्रेजी : तमस की भाषा (भाग १/५)
अंग्रेजी भाषा के प्रभुत्व से मुक्त होने की अपील करते हुए अमित शाह ने कुछ समय पहले जो कुछ कहा उसे बड़ी आसानी से उस विवाद के खाके में रख दिया गया, जिसकी आड़ में अंग्रेजी को सुरक्षित रखने की कुटिल नीति चलती रही है: भारतीय भाषाएँ बनाम अंग्रेजी के बदले हिंदीं बनाम अंग्रेजी। उपर से कहा गया अमित…
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जीवन राजनीति ही है?
मानव जीवन तीन प्रकार के सम्बन्धों में विस्तृत है। या यह भी कह सकते हैं, कि बंधा हुआ है: मनुष्य का अन्य मनुष्यों से सम्बन्ध; मनुष्य का प्राकृतिक विश्व के साथ सम्बन्ध और मनुष्य का परम तत्त्व – ईश्वर के साथ सम्बन्ध। तीन रिश्ते सम्पूर्ण रूप से एक दूसरे से स्वतंत्र नहीं हैं, क्योंकि तीसरा…
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‘आधुनिक भारत’: एक विरोधाभास
भारत में ही भारत के भारतीयों द्वारा विस्थापन की स्थिति में ७० वर्ष से नये बन रहे ‘आधुनिक’ भारत में क्या आपको अपनी आत्मछबि दिख रही है? अधिकतर भारतवासियों को अपनी छवि नहीं दिखती। इसी स्थिति को समझने के लिए हमें इस सवाल का सामना करना जरूरी है, कि हमारे आर्थिक, राजनैतिक, बौद्धिक – शैक्षिक – सांस्कृतिक और औद्योगिक जीवन में जिसे हम ‘अपना’,…
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आधारभूत से निराधार राष्ट्र की ओर
राष्ट्रीय नवरचना, ‘विकास’ और ‘प्रगति’ की राह पर चल पड़ने पर सभ्यता और संस्कृति के सवाल खड़े होने न केवल स्वाभाविक है; अगर खड़े न हो तो समझना चाहिए, कि कुछ भारी गड़बड़ है। आजादी का आंदोलन जब उस दौर में पहुंच गया, जहाँ आजादी आने के बाद देश की नवरचना के विषय में गंभीरता से निर्णयात्मक रूप से सोचना जरूरी हो गया, तब यही…
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