भारत गाथा (खण्ड २-३) प्रकाशित हुए

भारत गाथा (खण्ड २-३) प्रकाशित हुए

भारत गाथा (गुरुजी श्री रवीन्द्र शर्मा जी की दृष्टि से)

‘भारत गाथा’ पुस्तक शृंखला आदरणीय गुरुजी स्व. श्री रवीन्द्र शर्मा जी की बातचीत को साहित्यिक, अकादमिक, आदि हलकों तक ले जाने के उद्देश्य से किया गया एक प्रयास है। इस पुस्तक शृंखला का दूसरा खण्ड ‘प्रौद्योगिकी’ तथा तीसरा खण्ड ‘घर एवं वास्तु’ प्रकाशित हो गया है । इसके पूर्व, ‘भिक्षावृत्ति’ के रूप में पहला खण्ड पहले ही हमारे मध्य आ चुका है, जिसकी बढ़िया प्रतिक्रिया प्राप्त हो रही है।

खण्ड २ – प्रौद्योगिकी

‘प्रौद्योगिकी’ का जिक्र करते हुये गुरुजी हमारे देश के ‘उद्योग-प्रधान देश’ होने की बात बहुत ही लंबे समय से करते रहे हैं, जिसके मूल में वे ‘छोटी टेक्नोलॉजी’ को मानते रहे हैं। पुस्तक में ‘उद्योग-प्रधान देश’ एवं ‘छोटी टेक्नोलॉजी’ यानि ‘artisanal production system’ के विषय उनकी बातचीत को संकलित किया गया है।

भारत गाथा – खण्ड २: प्रौद्योगिकी

पूर्व में भी बहुत से विद्वानों ने ‘कुटीर उद्योग’, ‘production by masses’, ‘small scale industries’, ‘छोटा है तो बढ़िया है’, ‘small is beautiful’, आदि संकल्पनाओं के माध्यम से ‘छोटी प्रौद्योगिकी’ आधारित उत्पादन व्यवस्था की अपने-अपने ढंग से वकालत की है। पर गुरुजी ‘सभ्यता’ एवं ‘दर्शन’ के एक अलग ही धरातल से कारीगरों द्वारा प्रश्रित ‘छोटी प्रौद्योगिकी केन्द्रित उत्पादन व्यवस्था’ (artisanal production system) का दर्शन कराते हैं, जो वाकई में देखने, सुनने, चिंतन करने और उसे समाज में लागू करने लायक है।

पिछले कई वर्षों से भारतीय समाज व्यवस्था को गहराई से जानने-समझने वाले विभिन्न क्षेत्रों के लोग विशुद्ध भारतीय मेधा के गुरुजी श्री रवीन्द्र शर्मा जी की बातचीत की साहित्य रूप में माँग करते रहे हैं। पर मौखिक परम्परा में रचे-बसे गुरुजी की दृष्टि में लेखन से कहीं ज्यादा महत्व आपसी बातचीत का था। जिसके चलते वे उनकी बातचीत के लेखन को कम महत्त्व देते थे। ज्यादा आग्रह करने पर यही कहा करते कि ठीक है! मेरे जाने के बाद करते रहना।

लोगों की इस माँग को पूरा करने के उद्देश्य से गुरुजी की बातों को दो विभिन्न स्वरुपों में, दो विभिन्न पुस्तक-श्रृंखलाओं के रूप में प्रकाशित किया जा रहा है। ‘भारत गाथा’ नाम की पहली पुस्तक श्रृंखला में उनकी बातचीत को विषयवार 10 अलग खण्डों में प्रस्तुत किया जा रहा है। इस श्रृंखला की पहली पुस्तक ‘भिक्षावृत्ति’ खण्ड 1 के रूप में पहले ही हम सभी के सामने आ चुकी है। खण्ड 2 के रूप में ‘प्रौद्योगिकी’ पुस्तक भी अब हमारे सामने है।

आशा ही नहीं वरन पूर्ण विश्वास है कि पुस्तक शृंखला के पहले खण्ड की तरह इस दूसरे खण्ड को भी सुधीजनों का अच्छा प्रतिसाद मिलेगा।

यह पुस्तक, इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केन्द्र, नई दिल्ली से प्रकाशित है। और वर्तमान में यह वहीं पर एवं जीविका आश्रम, जबलपुर में उपलब्ध है।


खण्ड ३: घर एवं वास्तु

‘भारत गाथा’ पुस्तक शृंखला के दूसरे खण्ड ‘प्रौद्योगिकी’ के छपकर आने का अभी एक सप्ताह भी नहीं बीता है कि इस पुस्तक शृंखला का तीसरे खण्ड ‘घर एवं वास्तु’ के प्रकाशन का शुभ समाचार प्राप्त हो गया है। ‘भारत गाथा’ पुस्तक शृंखला गुरुजी स्व. श्री रवीन्द्र शर्मा जी के विचारों और बातचीत को साहित्यिक, अकादमिक, आदि विभिन्न हलकों तक ले जाने के उद्देश्य से पुस्तक रूप में प्रकाशित करने का एक प्रयास है।

जिन्हें जानकारी नहीं हो उन्हें बता दें कि गुरुजी स्व. श्री रवीन्द्र शर्मा भारत की समाज व्यवस्था को अपनी एक विशिष्ट दृष्टि से गहराई तक जानने-समझने वाले विशुद्ध भारतीय मेधा के कुछ बिरले लोगों में से एक हैं। अदिलाबाद, तेलंगाना में उनका एक ‘कला आश्रम’ रहा है। मौखिक परम्परा में रचे-बसे रहने के कारण उन्होंने हमेशा लेखन से कहीं ज्यादा महत्व लोगों के साथ सीधी बातचीत को दिया। इसके कारण उनकी ज्यादा कुछ बातचीत अभी तक लेखन के दायरे में नहीं आ पाईं थीं।

भारत गाथा – खण्ड ३: घर एवं वास्तु

पर भारत की समाज व्यवस्था और इसकी जीवनशैली के अभ्यासकों, अध्ययनकर्ताओं, विचारकों, आदि की ओर से उनकी बातचीत की साहित्य रूप में माँग काफी लम्बे समय से उठती रही है। लोगों की इस माँग को पूरा करने के उद्देश्य से गुरुजी की बातों को दो विभिन्न स्वरुपों में, दो विभिन्न पुस्तक-श्रृंखलाओं के रूप में प्रकाशित किया जा रहा है। ‘भारत गाथा’ नाम की पहली पुस्तक श्रृंखला में उनकी बातचीत को विषयवार 10 अलग खण्डों में प्रस्तुत किया जा रहा है। इस श्रृंखला की पहली दो पुस्तकें ‘भिक्षावृत्ति’ और ‘प्रौद्योगिकी’, खण्ड 1 एवं 2 के रूप में पहले ही छपकर आ गई हैं। खण्ड 3 के रूप में ‘घर एवं वास्तु’ पुस्तक भी हमारे सामने है।

गुरुजी बताते हैं कि हमारे जीवन में ‘डिजाइन’ बहुत ही महत्वशाली चीज रही है। हमारे अन्दर एक तरह का सामर्थ्य और मानस विकसित करने में आसपास की चीजों की डिजाइन की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है। आसपास की इन चीजों में घर भी शामिल है। अपने जीवन का एक लम्बा समय हम घर में बिताते हैं, इसीलिए घर के डिजाइन का हमारे मानस के निर्माण में बहुत महत्वपूर्ण योगदान होता है। वैसे तो गुरुजी के डिजाइन सम्बन्धी विचारों एवं बातचीत को इस पुस्तक शृंखला में एक अलग पुस्तक के रूप में संकलित किया गया है, परन्तु घर एवं भवनों की डिजाइन को एक स्वतंत्र एवं विस्तृत विषय मानकर इस पुस्तक में अलग से प्रस्तुत किया जा रहा है।

आशा है कि पुस्तक शृंखला के पहले खण्ड की तरह इन दोनों खण्डों को (२-३) भी आप सभी का अच्छा प्रतिसाद मिलेगा।

यह दोनों पुस्तकें, इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केन्द्र, नई दिल्ली से प्रकाशित है। और वर्तमान में यह वहीं पर एवं जीविका आश्रम, जबलपुर में उपलब्ध है।

संपर्क – श्री. संदीप कुमार साहू 7999986327 (७९९९९८६३२७), श्री. आशीष कुमार गुप्ता 7999336299 (७९९९३३६२९९)


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