संविधान और विधान

संविधान और विधान

हमारे मित्रगण संविधान को बहुत ऊंचा स्थान देते हैं। देना भी चाहिए। आधुनिक राष्ट्र राज्य व्यवस्था उसी के सहारे चलती है।
पर ये मित्र गांधी जी का नाम भी बड़ी श्रद्धा और भक्ति से लेते हैं। एक किस्सा याद आ गया। चम्पारण मैं धारा 144 लगी थी। गांधी जी को पकड़ कर कोर्ट में पेश किया गया। जज साहब ने पूछा “Mr Gandhi, do you plead guilty?”. गांधी जी का जवाब था “Yes, my lord. I am guilty.” और फिर थोड़ा सा रुक कर बोले कि “but, according to your law.”
स्वयं विचार कीजिए।

इसके बाद उन्होंने अपनी बात रखी। “but, according to your law.” कहकर उन्होंने स्वयं को मानवनिर्मित कानून (जो बार बार बदलता रहता है – हमारे कानून में अब तक कितने संशोधन हुए हैं, उसे देख लिया जाय) से एक झटके में मुक्त करा लिया। फिर उन्होंने अपनी अंतरात्मा, विधान (संविधान से अलग) को आधार बना कर अपनी बात रखी।अंत में उन्होंने जज साहब को दो विकल्प दिए। उन्होंने कहा “अब आपके पास दो विकल्प हैं। या तो अपने कानून के अनुसार मुझे कड़ी से कड़ी सजा दें या फिर यदि आप मेरी बात से सहमत हैं, तो वो गद्दी (पद) छोड़कर मेरे साथ खड़े हों।”।संविधान और विधान में यह जो फर्क है, उसे हमें भी ध्यान में तो रखना चाहिए। विधान सनातन होता है। अस्तित्व में जो व्यवस्था है, जिसे हम और आप बदल नही सकते, जो हर समय और हर स्थान में एक जैसा रहता है, वह होता है विधान। वह सर्वोपरी है। गांधी इसे मानते थे और संविधान से उपर मानते थे।


Posted

in

by

Comments

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.