स्वाति जल २०२४

स्वाति जल २०२४

अश्विनी, भरणी आदि 27 नक्षत्रों में से सूर्य जिस नक्षत्र में होता है, उसे “सौर नक्षत्र” माना जाता है। सूर्य एक नक्षत्र में लगभग ११ से १३ दिन रहता है। एक साल में सूर्य सारे २७ नक्षत्रों से पार होता है। व्यवहार में जिन मृगादि नौ नक्षत्रों की गणना प्रचलित है, वो वर्षा के सौर नक्षत्र हैं।

चंद्र हर मास में सारे नक्षत्रों से प्रवास (यात्रा) करता है। सामान्यतः चंद्र एक नक्षत्र में एक दिन रहता है। तीन पूर्वा (फाल्गुनी, आषाढा और भाद्रपद) नक्षत्रों में लगभग दो दिन रहता है।

शरद ऋतु में चंद्र-सूर्य तथा अगस्ति तारे की प्रभावी किरणों से वर्षा की बूंदे और धरा के ऊपर के (जैसे की नदी, तालाब, कुए इ.) जल को शुचि-विमल-मेध्य आदि वैद्यकीय गुण तथा वैद्यकीय उपयुक्तता प्राप्त हो जाती हैं, जिस का वैद्य लोग उपयोग करते हैं। इसे “शारदजल” या शारदीय जल कहा जाता है। इस स्वाति जल का चरकादि ग्रंथों में उल्लेख है। शरद ऋतु का आखरी भाग स्वाति नक्षत्र है। इस नक्षत्र में हुई वर्षा के पानी को विशिष्ट पद्धति से संग्रहित कर इसी स्वाति जल को स्नान / पान के लिए उपयोग करने की हमारे यहां परंपरा है तथा कुछ मंदिरों में नवजात शिशु व माताओं को उसे ‘तीर्थोदक’ के रूप में देने की परंपरा है। महाराष्ट्र एवं कर्नाटक के कुछ हिस्सो की महिलाएं इस जल का उपयोग दही जमाने के लिए करती हैं।

कहा जाता है कि स्वाती जल की बूंद सीप के मुख में पड़े तो उसका मोती बन जाता है। तो चलिए, मोती से भी मूल्यवान स्वाति जल को संग्रहित कर के आरोग्य प्राप्ति तथा आरोग्य रक्षा के लिए प्रयास करते हैं।

टिप्पणी:

इस साल – ई. २०२४ में सूर्य २२ अक्तूबर को स्वाति नक्षत्र में प्रवेश कर रहा है। सूर्य इस नक्षत्र में ४ नवंबर तक रहेगा। इसी काल में स्वाति जल संग्रहित कर सकते हैं।

वैद्यराज डॉ. सी. बी. देसाई, यादगुड, कर्नाटक

स्वाति जल के विषय में अधिक जानकारी हेतु संपर्कसूत्र:-
१) श्री. सुनील काणेकर +91 94226 29468
२) डॉ. राजेंद्र पाटील +91 93734 20225
३) श्री. गणेश श्रीनिवासन +91 70586 50697
४) डॉ. श्रीदेवी बेळवी +91 82776 42247
५) डॉ. रश्मी राऊत-गाडगीळ +91 93074 00922


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