Video Series- Deconstructing Modernity: Part (v) Newness Seeking

आधुनिक दिमाग एक भ्रम में जीता है। किसी बड़ी डिग्री वाले ने या किसी बड़े पुरस्कार विजेता ने कुछ कह दिया, तो वह उसे मान लेता है, उससे प्रभावित हो जाता है, अब चाहे वह खुद उस बात को समझता हो या ना हो। ये एक प्रकार की मान्यता है, परंपरा में भी मान्यता का बड़ा महत्त्व रहा है, वहाँ भी व्यक्ति मानता ही है कि ये जड़ी बूटी इस तरह खाने से ये बीमारी ठीक हो जाएगी, संभवत: ऐसा होने के पीछे का कारण वह भी नहीं जानता है, वह केवल मानता है, लेकिन अपने मानने को स्वीकार भी करता है, जबकि आधुनिक दिमाग मानता तो है कि इस कंपनी की दवाई खाने से मैं ठीक हो जाऊंगा, किन्तु वह अपने मानने को मान्यता के स्तर पर स्वीकार ना करके जानने के भ्रम में जीता है।

आधुनिक दिमाग को नयेपन का रोग लगा हुआ होता है और उसने नये और मौलिक के बीच में फर्क देखना छोड़ दिया होता है और हर नई चीज को मौलिक और श्रेष्ठ मान लिया जाता है, जबकि परंपरा में तो नए के लिए कोई स्थान नहीं होता है, जो कुछ भी नया दिखता है, वह भी तो मूल तत्त्वों में जोड़ घटाव करके ही बनाया जाता है, साधारण दिमाग पुराने के प्रति आश्वस्त होता है, क्योंकि वह time tested है और नए को संशय की दृष्टि से देखता है। इस पूरी बात को fashion industry के आधार पर अच्छे से समझा जा सकता है। समग्र आधुनिकता इसी आधार पर टिकी हुई है कि आपको लगातार कुछ नया खरीदना होगा, कुछ नया बनाना होगा, कुछ नया करना होगा, नया दिखना होगा, नया बोलना होगा, चाहे वो नया कितना ही बेहूदा क्यों न हो। इस नयेपन की दौड़ में कोई ठहराव नहीं है और जहाँ ठहराव नहीं है, वहाँ मौलिकता भी संभव नहीं।

आधुनिक व्यक्ति के शरीर और मन सदैव गतिशील रहते हैं, स्थिर नहीं रह पाते हैं। यही अनावश्यक गतिशीलता हड़बड़ाहट, थकान और भय को जन्म देती है। स्थिरता के अभाव में वह बड़ी सरलता से किसी से भी प्रभावित होने लगता है और यहीं से वह भय एवम् भ्रम से ग्रसित होने लगता है।

सुनिए पवन गुप्त जी की वाणी में Deconstructing Modernity शृंखला का पंचम चरण: Newness Seeking।

For more videos, click on https://saarthaksamvaad.in/videos/


Discover more from सार्थक संवाद

Subscribe to get the latest posts sent to your email.

Tags:

Comments

Leave a Reply

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

Discover more from सार्थक संवाद

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading