आजकल फेसबुक, व्हाट्सएप, आदि सोशल मीडिया के माध्यम से जहाँ-तहाँ के फोटो, वीडियो लगातार मिल रहे हैं कि कैसे आकाश नीला और साफ़ दिखाई देने लगा है। लोग रात में तारों को आँखों से सीधे देख पा रहे हैं। कई-कई स्थानों से सैकड़ों किलोमीटर दूर स्थित हिमालय और अन्य पर्वत शृंखलाओं के दर्शन हो रहे हैं। गंगा और यमुना जैसे नदियों के स्वच्छ जलों और उनके बहाव के वीडियो आ रहे हैं। हवा का, जल का, ध्वनि एवं अन्य कई चीजों का प्रदूषण नगण्य हुआ जा रहा है। जीव-जन्तु स्वच्छंद विचरण कर रहे हैं।
एक ओर जहाँ ये सब देखने को मिल रहा है, वहीं दूसरी ओर बचपन में पढ़ी-सुनी ऐसी ढेरों कहानियाँ याद आ रही हैं, जिनमें जिक्र आता था कि फलानी देवी ने फलाने अस्त्र से फलाने राक्षस का वध किया। या, फलाने देव ने फलाने अस्त्र से फलाने असुर का संहार किया। असुर का संहार होते ही चारों ओर सुख और खुशहाली छा गई। नदियाँ वापस अपने मार्ग से बहने लगी। आसमान साफ़ हो गया। चारों ओर शीतल, मन्द, सुगन्धित वायु बहने लगी। यज्ञशालाओं में अग्नि प्रज्ज्वलित हो उठी। पृथ्वी एक बहुत बड़े बोझ से मुक्त हुई। ऋतुएँ समय से चलने लगी। सभी जीव-जन्तु अपनी-अपनी जगहों पर स्वच्छंद विचरण करने लगे, आदि-आदि।
क्या वर्तमान समय में भी कोई ऐसा असुर है, जिसने पञ्च महाभूतों को अपने वश में कर रखा है? जिससे कुछ देर की मुक्ति मिलते ही सबकुछ अच्छा होने लगा है?
आज ‘आधुनिक विज्ञान’ नाम के इस असुर, ‘विज्ञानासुर’ का (जिसमें, GDP, अन्तहीन विकास आदि संकल्पनाओं सहित उसका अपना एक अर्थतन्त्र भी शामिल है) मानव जाति ने ‘लॉक-डाउन’ नामक अस्त्र से पूर्ण संहार भले न किया हो, पर कुछ समय के लिए अचेत जरूर कर दिया है। ‘लॉक-डाउन’ नामक अस्त्र से कुछ दिनों के लिए अचेत होते ही सभी पञ्च महाभूत उससे मुक्त हो रहे हैं।
मात्र कुछ दिनों के लॉक-डाउन से आधुनिक विज्ञान और उसके असंख्य अंग – बड़े-बड़े कारखाने, फैक्ट्रियां, तरह-तरह की सुविधाएँ प्रदान करने वाली बड़ी-बड़ी इंडस्ट्रीज़ (आवागमन, यातायात, पर्यटन, शिक्षा, रियल स्टेट, इंफ्रास्ट्रक्चर आदि ढेरों इंडस्ट्रीज) शिथिल पड़ गई हैं। इन सभी के कुछ दिनों के लिए बन्द होते ही संसार में, समाज में ईतने महत्तवपूर्ण परिवर्तन देखने को मिल रहे हैं। तब इस बात की कल्पना की जा सकती है कि यदि ये सारी चीजें हमारी जीवनशैली से सदैव के लिए ही गायब हो जायें, तो जीवन कैसा होगा। इन सभी के शिथिल अवस्था को प्राप्त होते ही हमारे समक्ष अपने समाज के बारे में कई रहस्य उद्घाटित हो रहे हैं, जिनके बारे में कुछ और ही धारणाएँ स्थापित कर दी गईं थीं –
- हमारी जरूरतें वाकई बहुत कम हैं, और हम ब्राण्ड, आदि के चक्कर में पड़े बिना धन-सम्पत्ति के भौंडे प्रदर्शन के बिना भी आसानी से जी सकते हैं।
- यह संसार केवल मानव जाति का ही नहीं बल्कि हमारे जैसे संसार के सभी जीव-जन्तुओं का है। मानव जाति के समान उनका भी इस पर बराबर का हक़ है।
- हम अपनी छुट्टियाँ बिना किसी पर्यटक स्थल गए भी आसानी से और आनन्द के साथ बिता सकते हैं।
- बिना उपभोग के विश्व में ईंधन तेल, सोने-चाँदी, आदि का कोई महत्त्व नहीं है।
- एक साफ़-सुथरा, स्वच्छ, स्व-आश्रित एवं स्व-तन्त्र-तापूर्वक जीवन जीना कोई बहुत कठिन कार्य नहीं है।
- वर्तमान तरह का मीडिया केवल झूठ और बकवास का पुलिन्दा है।
- पैसे का कोई मूल्य नहीं है। इस तरह की संकटों में इसकी असलियत पता चल जाती है। साथ ही यह भी कि हमारे पास धन प्रचुर मात्रा में है, यदि हम इसका बुद्धिमानी से उपयोग करें।
- सामूहिक या संयुक्त परिवार एकल परिवार से अच्छा होता है।
- हम और हमारे बच्चे बिना जंक फ़ूड के भी जिन्दा रह सकते हैं।
- समाज का उद्देश्य केवल लगातार बढती GDP दर और अन्तहीन ‘विकास’ ही नहीं है। और इन सब से न केवल कुछ प्राप्त हो सकता है, बल्कि इस तरह की विपत्तियों का मूल कारण ही ये हैं।
अब सोचना हमें है कि आधुनिक विज्ञान नामक इस असुर को केवल कुछ दिनों के लिये ‘अचेत’ अवस्था में रखकर ही हमें खुश रहना है, या फिर इसको हमेशा के लिए अपने नियन्त्रण में लेना है। और यदि, उसे अपने नियन्त्रण में लेना है तो उसकी पद्धतियाँ क्या और कैसी होनी चाहिए।
– आशीष गुप्ता
५ अप्रैल, २०२०.
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