‘लॉक-डाउन’ का भविष्य

‘लॉक-डाउन’ का भविष्य

भारत सहित विश्व के अन्य देशों के देशवासी भी ‘लॉक-डाउन’ को लेकर लगातार कयास लगा रहे हैं। सभी के समक्ष यह चिंता और चिंतन, दोनों का विषय है कि इसका भविष्य क्या होगा?

लॉक-डाउन के इस निकटवर्ती भविष्य के विषय में तो नहीं, पर इसके दूरगामी भविष्य को लेकर कोई सन्देह नहीं होना चाहिए।

‘लॉक-डाउन’, वर्तमान विपदा के दौरान उपजी एक बड़ी खोज प्रतीत हो रही है। अनजाने में ही सही, समाज के समक्ष प्रस्तुत हुआ यह एक अमोघ अस्त्र सरीखा दिख रहा है। कोरोना के प्रकोप से पहले, पर्यावरण के जिस संकट से हम सब जूझ रहे थे, यह उससे निजात पाने के लिए ‘ऑड – ईवन’ आदि फ़ॉर्मूलों की तुलना में अधिक कारगर उपाय समझ में आ रहा है।

खासकर तब, जबकि ‘जीवनशैली में स्थायी बदलाव’ जैसे कुछ कठिन दिखने वाले कदम उठाने में हमारे अन्दर अभी भी कुछ हिचकिचाहट है। तब तक पर्यावरण में अस्थायी सुधार के लिए ही सही, लॉक-डाउन एक महत्तवपूर्ण हथियार साबित हो सकता है। और यह उपाय धीरे-धीरे हमें ‘जीवनशैली में स्थायी बदलाव’ की ओर ले जाने का मार्ग ही प्रशस्त करेगा।

दिल्ली में पर्यावरण की हालत कुछ ज्यादा ही ख़राब होने के बाद ‘ऑड – ईवन’ का फ़ॉर्मूला निकला था। जिसे देश के उच्चतम न्यायालय ने सुझाया और दिल्ली की राज्य सरकार ने अमलीजामा पहनाया था। उस फ़ॉर्मूले से दिल्ली-वासियों को कुछ राहत तो मिली थी, पर पूरी नहीं। वहीं, लॉक-डाउन ने कुछ ही दिनों में पर्यावरण की विकराल समस्या का मुंहतोड़ जवाब दिया है।

आजकल फेसबुक, व्हाट्सएप आदि सोशल मीडिया के माध्यम से जहाँ – तहाँ के जो फोटो, वीडियो मिल रहे हैं, उनसे यह स्पष्ट होता है कि कैसे आकाश नीला और साफ़ दिखाई देने लगा है। लोग रात में तारों को आँखों से सीधे देख पा रहे हैं। कई-कई स्थानों से सैकड़ों किलोमीटर दूर स्थित हिमालय और अन्य पर्वत श्रृंखलाओं के दर्शन हो रहे हैं। गंगा और यमुना जैसी नदियों के स्वच्छ जलों और उनके बहाव के वीडियो आ रहे हैं। हवा का, जल का, ध्वनि एवं अन्य कई तत्त्वों का प्रदूषण नगण्य हुआ जा रहा है। जीव-जन्तु स्वच्छंद विचरण कर रहे हैं। लॉक-डाउन इतने कम समय में इतने बड़े परिवर्तन लाने में सफल हुआ है।

इस पृष्ठभूमि में एक सुझाव यह है कि वर्तमान तरह के कम-से-कम एक महीने के लॉक-डाउन को हमारे शासकीय वार्षिक कैलेन्डर में स्थायी रूप से शामिल कर लिया जाये, ठीक उसी तरह जैसे हमारी दशहरा-दीपावली-क्रिसमस आदि की तिथियाँ इसमें शामिल हैं। परन्तु, यह वार्षिक लॉक-डाउन इस बार की तरह अकस्मात्, अनिश्चित और अव्यवस्थित न होकर (जिसके कारण हमें ज्ञात ही हैं…) कुछ तैयारियों के साथ, व्यवस्थित तरीके से होना चाहिए :

  1. लॉक-डाउन बकायदा एक निश्चित वार्षिक कैलेन्डर के तहत हो – यह, उन दिनों के दौरान लाया जा सकता है, जब देश में आर्थिक गतिविधियाँ कुछ कम हों, या फिर तब जब देश में प्रदूषण सबसे ज्यादा होता हो।
  2. विधिवत पूर्व सूचना के साथ हो – यदि इसे वार्षिक कैलेन्डर में शामिल कर लिया जायेगा, तो उसकी पूर्व सूचना सबको होगी ही।
  3. सभी लोगों की नौकरी/मजदूरी/वेतन/आय आदि की पूर्ण सुरक्षा हो –
    1. ठीक उसी तरह जैसे वेतन भोगी लोगों के मासिक वेतन में शनिवार, रविवार, त्योहारों के साथ-साथ और भी कई तरह की छुट्टियाँ होते हुए भी उनकी नौकरी और उन दिनों का वेतन सुरक्षित रहता है। न्यायालयों, शिक्षा क्षेत्र आदि में होने वाले ग्रीष्मकालीन और शीतकालीन अवकाशों को लॉक-डाउन अवकाश में बदला जा सकता है।
    2. बेरोजगार, असंगठित क्षेत्र के लोग, दैनिक मजदूर, गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाले आदि लोगों को एक महीने का अतिरिक्त राशन एवं लॉक-डाउन राहत दी जा सकती है। ठीक उसी तरह, जैसे कि अभी दी गई है, परन्तु इस राहत पैकेज की पूरी तरह से समीक्षा करके वर्तमान में उसकी कमियों को पूरी तरह से दूर करके ही लागू किया जाना चाहिए।
    3. संगठित क्षेत्र के कामगारों और असंगठित क्षेत्र के गरीबी रेखा से नीचे रहकर जीवन यापन करने वालों के अतिरिक्त मध्यम वर्ग के व्यापारियों आदि के लिए भी एक राहत पैकेज दिया जाना चाहिए। जिसे उनके सालाना आयकर रिटर्न आदि से जोड़कर निर्धारित किया जा सकता है।
    4. प्रवासी श्रमिकों / कामगारों को भी उनकी मजदूरी के मुआवजे के लिए एक विशेष पैकेज दिया जाना चाहिए। ख़ासकर शहरों में रहने वाले मजदूरों के लिए। वैसे लम्बे समय में तो इस बात के ही प्रयास होने चाहिये कि पलायन रुके और पलायन की दिशा गाँवों की ओर बदले।
  4. अत्यावश्यक चीजों की आपूर्ति विधिवत जारी रहे, ठीक उसी तरह से, जैसे इस लॉक-डाउन में की गई है।
  5. यह सब करते हुए इस बात का भी विशेष ध्यान देने की जरूरत है कि लोग लॉक-डाउन रिसोर्ट, लॉक-डाउन डेस्टिनेशन, लॉक-डाउन टूर पैकेज जैसे विकल्पों पर न उतर आयें, वरना इसका पूरा उद्देश्य की ख़त्म हो सकता है।

यह सब, इस विषय के शुरूआती विचार हैं। इन विचारों पर विस्तार से चिन्तन-मनन करके, पूरी तरह से व्यवहारिक बनाकर ही अमल में लाना चाहिए।

यदि हम वर्ष में कम-से-कम एक बार इस तरह के स्वैच्छिक और सीमित-अवधि के लॉक-डाउन को लागू नहीं कर पाते हैं, तो कौन जाने प्रकृति कब हम पर स्थायी लॉक-डाउन लागू कर दे। अब मर्जी हमारी है। वैसे बेहतर विकल्प तो यह है कि हम ‘लॉक-डाउन’ को गोली मारें, और ‘स्लो-डाउन’ को अपनाएँ और ‘जीवनशैली में स्थायी बदलाव’ की ओर कदम बढ़ाएँ।

आशीष गुप्ता

10 अप्रैल, 2020


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