आधुनिकता और टेक्नोलॉजी (२ / ५)

गतांक से चालू

भाग १ यहाँ पढ़ें।

छोटी टेक्नोलॉजी इतनी सरल होती है, कि उसको कहीं भी ले जाया जा सकता है, जबकि बड़ी टेक्नोलॉजी एक जगह स्थिर होकर रहती है। भारतीय सभ्यता में जो टेक्नोलॉजी है, उसको चाहते, तो बहुत बड़ी भी बनाया जा सकता था, मगर टेक्नोलॉजी को इतना सरल, इतना छोटा करके रखा गया है, कि हर एक कारीगर, अपना कारखाना अपनी बगल में लेकर घूम सकता है। उसके लिए बड़े-बड़े वर्कशोपों की कल्पना नहीं की गई थी और ऐसा नहीं है कि छोटी टेक्नोलॉजी से उस तरह की चीजें नहीं बनाई जा सकतीं, जो बड़ी टेक्नोलॉजी से बनाई जा सकती हैं।

हर वो चीज जो बड़ी टेक्नोलॉजी से बनाई जा सकती है, छोटी टेक्नोलॉजी से भी बनाई जा सकती है। जरूरत है, तो मात्र उस तरह की सोच रखने की। इसी संदर्भ में गुरुजी एक और घटना सुनाते हैं –

“एक बार, हम लोग दौलताबाद का किला देखने गए। वो बहुत असाध्य किला है। उसके ऊपर आदमी भी बड़ी मुश्किल से चढ़ सकता है। उस किले के शिखर पर, बहुत ऊपर एक बहुत बड़ी तोप है। जहाँ आदमी का चढ़ना असंभव है, वहाँ एक बहुत बड़ी तोप पड़ी हुई थी। वो तोप लगभग 22 फुट लंबी थी।

उसको वहाँ देखने के बाद, हम जितने लोग जो वो किला देखने गऐ थे, उनके बीच काफी चर्चा चली, कि ये इतनी बड़ी तोप को इतनी ऊपर तक चढ़ाया कैसे गया होगा। जहाँ आदमी भी बड़ी मुश्किल से चढ़ता है, वहाँ इतनी बड़ी तोप कैसे लाई गई होगी!

सभी ने बहुत कुछ सोचा, कि ऐसे खींचा गया होगा, ऐसे चढ़ाया गया होगा। बहुत सोचा। मुझसे भी पूछा गया, कि गुरुजी आप बताइए, कि कैसे चढ़ाया गया होगा। मैंने कहा, कि तोप को कहीं से नहीं लाया गया है, कहीं से चढ़ाया-वढ़ाया नहीं गया है। इस तोप की ढलाई ही यहाँ कर दी गई है। उसको वहीं आसानी से बना लिया गया होगा। तोप वहाँ तक ढोने के बदले वो लोग कारखाने को वहाँ तक ढोकर लाए होंगे।”

क्योंकि हमारी जो टेक्नोलॉजी थी, उसको इतना सादा कर दिया गया था, कि हर कारीगर अपना कारखाना अपने सर पर, अपनी बगल में लेकर घूम सकता है। कई बार कारीगर अपने स्वयं के घर पर काम करता है, कई बार किसी के घर पर जाकर भी काम कर देता है। इतने सरल कारखाने रहे हैं। मनिहारी के बहुत से काम, लकड़ी का काम, सोने का काम, जैसे बहुत से काम कारीगर के द्वारा लोगों के घरों में ही जा कर किये जाते हैं।

ऐसा एक नहीं, बल्कि कई उदाहरण हमारे सामने आते हैं, जहाँ बड़ी-बड़ी और उत्कृष्ट चीजें हमारे कारीगरों द्वारा अपनी छोटी टेक्नोलॉजियों से ही बनाई गई थी, जो आज की आधुनिक बड़ी टेक्नोलॉजी में संभव ही नहीं है।

“बड़े – बड़े कारखानों के वश का नहीं है, कि हरेक के लिए डिजाइन पैदा कर ले, क्योंकि ये तो 10-15 डिजाइन की चीज़ भी नहीं बना सकते, मगर छोटी टेक्नोलॉजी में वो बात है, कि वो ‘एक’ चीज भी बना सकती है, और ‘हजार’ चीज भी बना सकती है।” गुरुजी बताते थे, कि बड़ी टेक्नोलॉजी और छोटी टेक्नोलॉजी में यह बहुत बड़ा और मूलभूत अंतर है।

छोटी टेक्नोलॉजी के माध्यम से समाज में सांस्कृतिक और सामाजिक विविधता कायम की जाती रही है। छोटी टेक्नोलॉजी में हर समय, संदर्भ और स्थान के लिए अपनी एक डिज़ाइन संभव है। यही कारण है, कि भारतीय समाज में हर समय और हर संदर्भ के लिए अलग – अलग डिजा़इन हुआ करती है।

यहाँ बहुत से समाजों में महिलाओं के परिधान देखकर ही उनकी संतानों की संख्या पता चल जाती है, विवाहित या अविवाहित या विधवा होना भी पता चल जाता है। इसी तरह लोगों के परिधान देखकर उनके घरों में होने वाले विशेष कार्यक्रमों के बारे में पता चल जाता है। उनकी जातियों के बारे में भी उनके परिधान बहुत कुछ बयान कर देते हैं।

समाज के हर वर्ग के अलग – अलग संदर्भों, अलग – अलग समयों के लिए अलग – अलग डिजा़इन हुआ करती थी, जो कि उनके कपड़ों, उनके बर्तनों, उनके घरों, घरों के दरवाजों, खिड़कियों आदि तक में अलग से परिलक्षित होती थी। इतना ही क्यों, बैलों और अन्य जानवरों के अलग – अलग अवसरों के अलग – अलग श्रृंगार और अलग – अलग घुंघरू तक हुआ करते हैं।

लंबे प्रयाण पर जाने वाले छकडों के बैलों के घुंघरू, भारी बोझा ढोने वाली बैलगाड़ियों में बंधे बैलों के घुंघरू, शादी-ब्याह और ऐसे अन्य अवसरों पर बैलगाड़ियों में लगने वाले बैलों के घुंघरू, अन्य सामान्य समय में बैलों के गले में बंधने वाले घुंघरूओं के डिजा़इन में काफी फर्क होता है। इसी तरह बैलों, बकरियों, गायों, गधों, घोडों के घुंघरूओं के डिज़ाइन में भी काफी अंतर होता है।

जब टेक्नोलॉजी छोटी होती है, तो हर जरूरत, हर समय के लिए सामान बनाना संभव होता है। वहीं जब टेक्नोलॉजी बड़ी हो जाती है, तो वो एक डिज़ाइन करोड़ों में तो बना सकती है, मगर करोड़ लोगों के लिए 50 – 100 डिज़ाइन से अधिक की चीजें भी नहीं बना सकती।

यही कारण है, कि जब हम दर्जी के पास जाते हैं, तो वो एक व्यक्ति विशेष की कद – काठी के हिसाब से उसके नाप के कपड़े बना देता है। वहीं कारखानों में बने कपड़े एक नाप विशेष के होते हैं। व्यक्ति को उस नाप में फिट होना पड़ता है। एक कारखाना, जिसमें सैकड़ों, हजारों व्यक्ति काम करते हैं, उसमें ले – देकर 8 – 10 नाप के, 15 – 20 डिज़ाइन से ज्यादा के कपड़े तैयार नहीं हो सकते हैं। जबकि उनकी जगह पर सैकड़ों दर्जी आसानी से लाखों लोगों को उनकी डिज़ाइन विशेष के कपड़े बना के दे देता है।

गुरुजी इस संदर्भ में भी एक दिलचस्प वाक्या सुनाते हैं –

“जब मैं बड़ौदा में पढ़ रहा था तो कॉलेज में कोई एक फिरंगी, एक विदेशी आ गया। उसके पास तस्वीरें लेने का कैमरा था। उसका एक स्क्रू कहीं गिर गया, जिससे वो बहुत परेशान था, क्योंकि एक मात्र स्क्रू गिर जाने से उसका पूरा कैमरा खराब हो गया था। उसने उसकी बहुत खोज – बीन की, पर वो स्क्रू उसको मिला नहीं।

वहीं हमारे कॉलेज में महेन्द्र पण्ड्या जी भी थे। उसने उनको भी अपनी समस्या बताई, कि इस एक मात्र स्क्रू के कारण पूरा कैमरा बेकार हो गया है। दूसरा भी ले नहीं सकते, क्योंकि उस समय वो बहुत मंहगा आता था। उन्होंने कहा, कि चलो ठीक है, बाजार में देखकर आएंगे, ढूंढ़कर आएंगे, कहीं मिल जाए तो। सब मिलकर एक सुनार की दुकान में गए। उन्होंने उसको उसकी समस्या बताई, तो सुनार ने बताया, कि “इसको यहीं रख के जाओ। मैं देखता हूँ, मेरे पास में होगा यदि, तो मैं ही लगा दूंगा।” उनको बाजार में तो वह स्क्रू कहीं मिला नहीं और फिर जब वो लौटकर के सुनार के पास आए, तो कैमरे का स्क्रू कैमरे के पास रखा हुआ था। उसको कैमरे में लगाया और कैमरा चालू हो गया।

तो उस विदेशी लड़के ने सुनार से पूछा, कि “तुमको ये मिला कहाँ से?”

सुनार बोला, कि “कहीं से मिला नहीं, इसको मैंने बना दिया।”

लड़के को आश्चर्य हुआ, “क्या! एक स्क्रू तुम बना सकते हो, क्या?”

सुनार: “इसमें कौन सी बड़ी बात है।” मगर उस अंग्रेज लड़के को बड़ा ताज्जुब लगा कि हमारे देश में कोई व्यक्ति ‘एक’ चीज भी बना सकता है। क्योंकि उसके देश में तो कोई ‘एक’ चीज नहीं बना सकता है। करोंड़ों में कोई चीज बन सकती है, मगर ‘एक’ चीज कोई नहीं बना सकता।”

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