Author: Rupesh Pandey

  • गरीबी के इतिहास में छिपी समृद्धि की अर्थव्यवस्था (भाग ३/३)

    आस्था भारद्वाज रुपेश पाण्डेय भाग २ को यहाँ पढ़ें। आज जो हालात है, उसमें हमें अपने बारे में अपने तरीके से सोचने की जरूरत है, जिसके लिए जरुरी है, कि हम देश को बाजार और मानव को उपभोक्ता समझने की नीति से बाहर निकलें। भारत के बारे में कहा जाता रहा है, कि यह गाँव में…

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  • गरीबी के इतिहास में छिपी समृद्धि की अर्थव्यवस्था (भाग २/३)

    आस्था भारद्वाज  रुपेश पाण्डेय भाग १ को यहाँ पढ़ें। आक्रमणकारी मुगलों के साथ आये ‘गरीब’ ने लम्बे कालखंड में निर्धनता को बहिष्कृत कर उसका स्थान लिया, जिसे अंग्रेजी सत्ता ने संस्थागत रूप प्रदान किया। भारत की वर्तमान गरीबी के स्रोत के रूप में हमें 18वीं सदी में बंगाल में आये अकाल को याद रखने की जरूरत है। 1778 में ब्रिटेन के…

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  • गरीबी के इतिहास में छिपी समृद्धि की अर्थव्यवस्था (भाग १/३)

    आस्था भारद्वाजरुपेश पाण्डेय भारत में आज जो गरीबी दिख रही है, उसका एक इतिहास है। ठीक वैसे ही, जैसे गरीब शब्द का। गरीबी को परिभाषित करने वाला यह शब्द, आज हिंदी शब्दकोष में भले ही अपना स्थान बना चुका है, लेकिन यह मूल हिंदी का शब्द नहीं है। भारत से हज़ारों किमी. दूर अरब से…

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  • महात्मा गांधी की सभ्यता दृष्टि

    महात्मा गांधी की सभ्यता दृष्टि

    गांधी जी के सभ्यतागत विचारों को जानने की दृष्टि से सीधे-सीधे एक लाइन में कहा जाय तो कह सकते हैं कि हिंद स्वराज को पढ़ लेना चाहिए। जिसमें गांधी जी ने पश्चिमी (ईसाई) सभ्यता को शैतानी सभ्यता घोषित किया है और उसकी अनुगामी संसदीय लोकतंत्र प्रणाली की बांझ और वैश्या से तुलना की है। हिंद…

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  • प्रकृति का साथ और पर्यावरण की बात

    प्रकृति का साथ और पर्यावरण की बात

    प्रकृति का साथ और पर्यावरण की बात दोनों अलग-अलग चीजें हैं। विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर भारत ही नहीं दुनिया भर में पर्यावरण बचाने की तमाम बातें होंगी, लेकिन प्रकृति के साथ जीने की बात नहीं होगी, क्योंकि प्रकृति के साथ जीने की बात करने वाले को वैसा जीकर स्वयं अनुभव कर के ही बात कहनी…

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