Category: Hindi Articles
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विविधता – परंपरा में व आधुनिकता में : भाग २/२
आज की आधुनिकता की बुनियाद शाश्वत सत्य पर नहीं खड़ी है। इतना ही नहीं, आज की आधुनिकता में तो सत्य की शाश्वतता को ही नकार दिया गया है। ‘सब का अपना अपना सत्य होता है’ को शाश्वत सत्य की तरह स्थापित कर दिया गया है। सबकी अपनी अपनी पसंद / ना-पसंद होती है; सबका अपना…
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विविधता – परंपरा में व आधुनिकता में : भाग १/२
राग एक, अदायगी अनेक। पेड़ की प्रजाति एक, परंतु फिर भी उसी प्रजाति के दो पेड़ एक जैसे नहीं। सब अपनी अपनी छटा, अपनी विशिष्टता लिए हुए, पर मूल में एक, उसमें समानता। विविधता को परंपरा में, भारतीय दृष्टि में, संभवतः ऐसे ही देखा गया है। मूल में नियम बसे होते हैं, जो निराकार, अगोचर…
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‘आधुनिक भारत’: एक विरोधाभास
भारत में ही भारत के भारतीयों द्वारा विस्थापन की स्थिति में ७० वर्ष से नये बन रहे ‘आधुनिक’ भारत में क्या आपको अपनी आत्मछबि दिख रही है? अधिकतर भारतवासियों को अपनी छवि नहीं दिखती। इसी स्थिति को समझने के लिए हमें इस सवाल का सामना करना जरूरी है, कि हमारे आर्थिक, राजनैतिक, बौद्धिक – शैक्षिक – सांस्कृतिक और औद्योगिक जीवन में जिसे हम ‘अपना’,…
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आधारभूत से निराधार राष्ट्र की ओर
राष्ट्रीय नवरचना, ‘विकास’ और ‘प्रगति’ की राह पर चल पड़ने पर सभ्यता और संस्कृति के सवाल खड़े होने न केवल स्वाभाविक है; अगर खड़े न हो तो समझना चाहिए, कि कुछ भारी गड़बड़ है। आजादी का आंदोलन जब उस दौर में पहुंच गया, जहाँ आजादी आने के बाद देश की नवरचना के विषय में गंभीरता से निर्णयात्मक रूप से सोचना जरूरी हो गया, तब यही…
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बड़े भैया, केदारा गाइये
लेखक – किशनसिंह चावडा (जिप्सी)किताब – अंधेरी रात के तारे एकादशी और पूर्णिमा के दिन मैं पिताजी के साथ गुरुद्वारे जाया करता था। शाम को भजन होता था। मेरी उम्र उस समय चौदह-पन्द्रह वर्ष की रही होगी। भजन में गुरु महाराज खुद मृदंग बजाते थे। पिताजी करताल बजाते और गिरधर चाचा झाँझ बजाने में सिद्धहस्त…
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मृत्यु के तांडव में शिवसंकल्प
लेखक – किशनसिंह चावडा (जिप्सी) प्लेग के दिन थे। महामारी ने पूरे शहरमें भय और आतंक का वातावरण फैला रखा था। जिन्हें बाहर चले जाने की सुविधा थी, वे कभी के शहर छोड़ कर चले गये थे। धनवान और उच्च मध्यम वर्ग के बहुत से लोग शहर के बाहर कुटिया बना कर रहने लगे थे।…
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गांधी के साथ ज़बरदस्ती ठीक नहीं
सार्थक संवाद ब्लॉग पर 16 अक्टूबर को एक लेख छपा। सुशोभित जी द्वारा लिखे इस लेख का शीर्षक है “श्रम के मूल्यांकन में विवेक की भूमिका”। यह लेख मैंने जब पढ़ा, तो मुझे यह ठीक नहीं लगा। मित्र आशुतोष जी के कहने पर मैंने अपनी आपत्ति को कमेंट्स सेक्शन में दर्ज़ कराया। बाद में उनका…
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प्रभु मोरे अवगुन चित न धरो
लेखक – किशनसिंह चावडा पिताजी भक्त थे। निरांत संप्रदाय में उनकी गुरु परंपरा थी। अर्जुनवाणी के रचयिता अर्जुन भगत उनके गुरुभाई थे। पिताजी ने भी सन 1913 – 14 में तत्त्वसार भजनावलि नामक एक भजनसंग्रह छपवाया था। भजन गाने का उन्हें जन्मजात शौक था। प्रकृति ने बुलंद आवाज की देन दी थी। पुराने ठाठों की…
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श्रम के मूल्यांकन में विवेक की भूमिका
हिन्द स्वराज में महात्मा गांधी ने प्रश्न किया था, कि वकील मज़दूर से ज़्यादा रोज़ी क्यों मांगते हैं? उनकी ज़रूरतें मज़दूर से ज़्यादा क्यों हैं? उन्होंने मज़दूर से ज़्यादा देश का क्या भला किया है? यह एक महत्वपूर्ण प्रश्न था, जिस पर हिन्द स्वराज लिखे जाने के 113 वर्षों बाद भी पर्याप्त मनन नहीं हो…
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अंधेरी रात के तारे – माँ
किशनसिंह चावडा बीसवीं शताब्दी के गुजरात के ख्यातनाम लेखक रहे हैं, जिन्होंने कई सारे वृतांत लिखे हैं। इनमें से अधिकांश प्रसिद्ध गुजराती कवि श्री उमाशंकर जोशी जी की पत्रिका संस्कृति में १९४७ के कुछ समय बाद से “जिप्सीनी आंखोथी” (जिप्सी की आंखो से) शीर्षक से प्रकाशित होते रहे हैं। इन सभी लेखों का संकलन करके…
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