Ek Bharat Aisa Bhi – Episode 3 – भारतीय अर्थव्यवस्था बनाम आधुनिक अर्थव्यवस्था

कहते तो सब हैं कि भारत में अन्न, दूध, औषधि, शिक्षा और न्याय का व्यापार वर्जित था, लेकिन इस व्यवस्था के पीछे का चिंतन किया जाना भी अति आवश्यक है।

प्रस्तुत है एक भारत ऐसा भी का तृतीय अंक, जिसमें हम बात कर रहे हैं एक ऐसी व्यवस्था की जहाँ कुम्हार से लेकर बढई से लेकर किसी भी कारीगर को खाने पीने की शायद ही कोई चीज खरीदने की जरूरत पडती हो। (इसे barter system मत कहिएगा, barter system से यह व्यवस्था किस प्रकार भिन्न है, उसके विषय में फिर कभी बात करेंगे।)

और खाने पीने की ही क्यों, कारीगरी की चीजें भी गाँव के भीतर खरीदने बेचने की जरूरत नहीं पडती थी। हाँ, गाँव के बाहर व्यापार जरूर होता था, किंतु वह भी कुछ नियमों के अधीन ही।

यहाँ उत्पादन का उद्देश्य अपने यजमानों (वर्तमान परिपेक्ष्य में ग्राहकों) की आवश्यकता की आपूर्ति करने का होता है, जबकि वर्तमान अर्थतांत्रिक ढाँचे में उत्पादन का उद्देश्य मुनाफे तक सीमित होकर रह गया है।

भारत में इसीलिए सदैव सामाजिक अर्थतंत्र की बात होती रही है, केवल अर्थतंत्र की कदापि नहीं।

आज वैश्विक अर्थतांत्रिक फलक पर जब मंदियों की कतार लग रही है, तो यह सोचना भी आवश्यक हो गया है, कि जिस तरह अनंत विकास के काल्पनिक सुवर्णमृग के पीछे यह अंधी दौड लगी है, कहीं वह हमें मुँह के बल ना गिरा दे।

आशा है, यह विडीयो आपको कुछ विचारयोग्य बिंदु प्रदान करेगा, हम जल्द ही प्रस्तुत होंगे एक भारत ऐसा भी का चतुर्थ अंक लेकर।

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Comments

One response to “Ek Bharat Aisa Bhi – Episode 3 – भारतीय अर्थव्यवस्था बनाम आधुनिक अर्थव्यवस्था”

  1. […] भारत ऐसा भी के पिछले अंक में हमने भारतीय अर्थव्यवस्था से […]

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