अदिलाबाद के कला-आश्रम में ऐसा कोई भी कार्यक्रम नहीं था जो कि सुनील जी के बिना पूरा होता था। आश्रम परिसर में हर साल गुड़ी-पड़वा के दिन मनाया जाने वाला युगादी मित्र-मिलन कार्यक्रम सुनील के बिना अधूरा था। सुनील जी स्वयं अपनी टीम के साथ कुछ दिन पहले से आकर कार्यक्रम की तैयारी में लग जाते थे। सुनील जी ने आश्रम में तीन-चार बड़े-बड़े कार्यक्रम भी आयोजित करवाए थे, जिनमें राष्ट्रीय कारीगर पंचायत, सह्याद्री कला उत्सव, कला विश्व दर्शनम, गुरुजी षष्टि-पूर्ति कार्यक्रम, भिक्षावृत्ति जाति सम्मेलन, आदि प्रमुख थे। आश्रम से उनके जुड़ाव को इसी बात से समझा जा सकता है कि अभी तीन माह पहले बसन्त पंचमी के दिन गुरुजी के न रहने पर गुरुजी के पुत्र के विवाह में आश्रम-परिवार के सभी मित्रों की विदाई की जिम्मेदारी उन्हें ही सभी ने एकमत से सौंपी थी।
अपने कार्यक्षेत्र और कार्यशैली, दोनों ही दृष्टि से सुनील जी, अदिलाबाद के गुरुजी श्री रवीन्द्र शर्मा जी के सच्चे शिष्य थे। और अपने हिसाब से, अपने स्तर पर गुरुजी के काम को निरन्तर आगे बढ़ाने में लगे हुये थे। यही कारण था कि गुरुजी भी सुनील जी के हर काम में उनके साथ नजर आते थे। जनवरी 2016 में ग्राम कोठा में स्थापित होने जा रहे ‘ग्राम ज्ञानपीठ’ के शुभारम्भ कार्यक्रम में भी वे सुनील जी के साथ बराबरी से खड़े नजर आए। जबकि उससे एक-दो माह पूर्व ही गुरुजी कीमोथेरपी के कठिनतम समय से बाहर आए थे। उस समय उनकी हालत, उनके भोजन, पानी, दवाई, आदि के परहेज को देखकर किसी को भी उनके वहाँ पहुँच पाने का विश्वास नहीं था। इस सबके बावजूद भी वे न केवल वहाँ आए, बल्कि तीन-चार दिन तक वहीं रुके भी।
यकीन ही नहीं होता कि इतने कम समयान्तरल में ही दोनों के दोनों गुरु-शिष्य हमसे इतनी दूर चले जायेंगे!
सुनील जी के जाने से देश और समाज के स्तर पर जो रिक्तता उत्पन्न हुई है, वह भर पाना कठिन ही नहीं, बल्कि असंभव है। क्योंकि आज उस तरह के व्यक्ति ही बनना बन्द हो गए हैं। आज हमारे बीच में कितने ऐसे लोग होंगे जो गाँव में रहते हुये लेकर राष्ट्रीय स्तर तक लोगों तक लोगों की बात इतनी सहजता से पहुँचा सकें।
आज लोगों के लिए परिस्थितिवश असहज, संयमित और परेशान होते रहना आम बात है। पर यह सुनील जी का गुण नहीं था। अपने कार्य के दौरान, और विशेषकर इतने अंदरूनी इलाके में रहने के कारण न जाने कितने प्रकार की परेशानियाँ, कितने प्रकार की दिक्कतें उनको आती रहती थीं । आर्थिक परेशानियाँ तो जैसे उनके जीवन का सामान्य अंग थीं। पर इन सबके बावजूद उनको शायद ही कभी किसी ने परेशान, असहज या असंयमित होते देखा है।
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