आज समाज के अलग-अलग वर्ग एक दूसरे से एकदम कट से गए हैं – कारीगर हो, आम ग्रामीण जन हों, आम शहरी जन हो, सामाजिक संस्थाओं में काम करने वाले व्यक्ति हों, कॉलेज स्टूडेंट्स हों, beaurocrates हों, technocrats हों, शासन-प्रशासन के अधिकारी हों, नेता हों – सब के सब अपनी अलग-अलग मान्यताओं, धारणाओं, मूल्यों में जी रहे हैं। आज ऐसे कितने लोग होंगे जो इन सभी वर्ग के लोगों के साथ एक-जैसी सहजता से सम्पर्क और सम्बन्ध रख पाते होंगे। सुनील जी के लिए इन सभी वर्ग के लोगों के साथ एक जैसी सहजता से रहना सामान्य स्वभाव का हिस्सा था । मानो, अपनी दैनिक प्रार्थना “हर देश में तू, हर वेश में तू, तेरे नाम अनेक तू एक ही है’ को अपने विशेष ढंग से चरितार्थ कर रहे हों।
जितनी बड़ी क्षति आज देश और समाज को हुई है, उतनी या शायद उससे भी बड़ी क्षति व्यक्तिगत स्तर पर हुई है। आज, मेरे ऊपर से बड़े भाई का साया उठ गया है। गुरुजी के रहते हुये भी, और गुरुजी के जाने के बाद से तो और भी ज्यादा, मैं अपने हर छोटे-बड़े काम, छोटी-बड़ी दुविधाओं के लिए उन पर निर्भर था। कब और कैसे, वे मेरे लिए इतने महत्वपूर्ण होते गए थे, मुझे पता ही नहीं चला। एक बड़े भाई की तरह उन्होंने कभी इसका पता भी नहीं चलने दिया और मुझे निरन्तर आगे बढ़ने की शक्ति देते रहे। जीविका आश्रम की शुरुआत से लेकर वर्तमान समय तक हमेशा मेरे साथ खड़े नजर आए। आपके इन ऋणों से उऋण होना इस जीवन में तो शायद सम्भव नहीं हो पायेगा …
आज जब सुनील जी शरीर रूप में हमारे साथ नहीं हैं, तो न जाने कितना कुछ याद आ रहा है। उनका जाना, समाज से एक महत्वपूर्ण आदर्श का चला जाना है। फिर भी उनके न रहने पर भी यदि हम उनके छोड़े अधूरे कामों को पूरा करते हैं, तो यह उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
भगवान से प्रार्थना है कि वह सुनील जी को अपने श्री चरणों में स्थान दे, और घर में आई (माँ), निरुपमा जी, मुग्धा, और हम सब को भी यह दुख सहने की शक्ति प्रदान करे ।
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