Author: Pawan Gupta

  • भारत का आत्म-संकोच

    हमारा देश आत्म-संकोची हो गया है। हम लोग खुल कर अपने अंदर की बात आसानी से नहीं कर पाते। जिस माहौल में होते हैं, वहाँ के मुहावरे और वहाँ जो चलता है, उसका अनुमान पहले लगाते हैं, हिसाब- किताब लगाते हैं और फिर बोलते हैं। इसे भले ही कुछ लोग समझदारी कहें, पर इसमे डर…

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  • बी एच यू और काशी – २

    बी एच यू और काशी – २

    बीएचयू तो काशी का एक हिस्सा है, पर एक अद्भूत इंसान की वजह से थोड़ा बहुत वाराणसी भी घूमना हुआ और कुछ गुणी सज्जनों से मिलना भी। इसकी वजह बने डॉक्टर कृष्ण कान्त शुक्ल – अमरिका में कई वर्ष Physics और खगोल शास्त्र पढ़ाने के बाद संगीत को अपना बना लिया, Physics छूट गई, या…

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  • बी एच यू और काशी – १

    बी एच यू और काशी – १

    यह लेख सन 2016 में लिखा गया था। हर बार की तरह इस बार भी बनारस आकर मन प्रफुल्लित हो गया। पता नहीं, अब तो मैंने विश्लेषण करना भी छोड़ दिया है, कि ऐसा क्या है यहाँ, यहाँ के लोगों में, हवा में, बोली में, यहाँ की बेपरवाही में, बेतरतीबी में, यहाँ की गंगा में,…

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  • भारत की आत्मा

    भारत की आत्मा

    प्रवचन: आश्रम में प्रार्थना के बाद मिल मजदूरों के साथ –  (मार्च 17, 1918) (गांधीजी का यह प्रवचन अत्यंत महत्वपूर्ण है। अहमदाबाद के मिल मजदूरों की हड़ताल के बाफी दिनों बाद गांधीजी अनशन पर बैठने का निर्णय लेते हैं। यह निर्णय उनके लिए काफी दुविधा उत्पन्न करता है। इस दुविधा को वे इस प्रवचन में…

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  • साधारण, श्रेष्ठता और आस्था

    साधारण, श्रेष्ठता और आस्था

    गांधी जी की ‘साधारण’ एवं ईश्वर में आस्था, अनुभव और तर्क दोनों पर आधारित थी। साधारण, कोई व्यक्ति विशेष नहीं हुआ करता, बल्कि “साधारण” का सामूहिक (collective) पक्ष ही महत्वपूर्ण है। महात्मा गांधी के लिए इसमें ही भारत की सभ्यता का उज्ज्वल पक्ष झलकता था। यह साधारण कैसे अपने निर्णय लेता है रोजमर्रा की ज़िंदगी…

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  • भारत का साधारण ही श्रेष्ठ होता था

    भारत का साधारण ही श्रेष्ठ होता था

    भारत में कभी साधारण ही श्रेष्ठ हुआ करते थे। आम कारीगर अपना मालिक था, किसी के मातहत काम नहीं करता था और ये कारीगर उन जातियों से होते थे जिन्हें आज हमने पिछड़े और दलित की श्रेणी में डाल दिया है। यहाँ की समृद्धि जिसे पश्चिम के अर्थशास्त्र के इतिहासकार ऊंचे दर्जे की मानते थे,…

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  • आत्म-संकोच

    अपनी बोली में लिखने का मज़ा ही कुछ और है। कितनी सहजता अपने आप आ जाती है। अँग्रेजी ने कितना कबाड़ा किया है – दिमाग का, सोच का, दृष्टि का, सोचने के ढंग का – इसका मूल्यांकन होना अभी बहुत दूर की बात है। जो थोड़े से लोग (इनकी संख्या तेजी से बढ़ती जा रही…

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  • संविधान और विधान

    संविधान और विधान

    हमारे मित्रगण संविधान को बहुत ऊंचा स्थान देते हैं। देना भी चाहिए। आधुनिक राष्ट्र राज्य व्यवस्था उसी के सहारे चलती है।पर ये मित्र गांधी जी का नाम भी बड़ी श्रद्धा और भक्ति से लेते हैं। एक किस्सा याद आ गया। चम्पारण मैं धारा 144 लगी थी। गांधी जी को पकड़ कर कोर्ट में पेश किया…

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  • हमारी स्वयं की समझ?

    1750 में अंग्रेज़ और पश्चिम के अन्य आर्थिक इतिहासकारों के अनुसार भारतवर्ष दुनिया के कुल गैर कृषि उत्पाद का 24.5 से लेकर 33% उत्पादन करता था। यह लगभग निर्विवाद है। बहस 24.5 और 33 के बीच की है। Huntington की बहुचर्चित पुस्तक A Clash of Civilisation मैं 33% वाला आंकड़ा है। माने 1750 तक भी…

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