Category: Hindi Articles
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कहो नहीं, करके दिखलाओ
आज हम ऐसे दौर में से गुजर रहे हैं, जहाँ किसी भी विषय पर सलाह देने के लिए consultants और experts की भरमार है, किन्तु आवश्यकता कहने की नहीं, करने की है और उसी विचार का मंथन श्री आशीष कुमार गुप्ता जी के द्वारा लिखित प्रस्तुत लेख में किया गया है।
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नशेड़ी लोकतंत्र
मेरा भरोसा तो इस तथाकथित लोकतंत्र से लगभग उठ सा गया है। यह तो नशेड़ी लोकतंत्र है, जहाँ पहले शिक्षा के मार्फत सबको भांग पिलाओ, उसकी लत डलवाओ और फिर भांग का वादा करके सत्ता हाँसिल करो। यही है आधुनिक लोकतंत्र। कोई जिम्मेदारी नहीं, कोई कर्तव्य बोध नहीं, कोई संयम नहीं, बस consumption और sensory…
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भिक्षावृत्ति उत्सव : भाग (२/२)
इस आलेख का पहला भाग पढने के लिए https://saarthaksamvaad.in/भिक्षावृत्ति-उत्सव-भाग-१/ पर क्लिक करें। चर्चा सत्र —
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भिक्षावृत्ति उत्सव : भाग (१/२)
‘भिक्षावृत्ति’ की भारत वर्ष में एक सुदीर्घ परम्परा रही है। ‘भिक्षाटन’ को अन्य ढेरों वृत्तियों की तरह एक वृत्ति यानि जीवनयापन का साधन माना गया है। वे समाज में मनोरंजनकर्ता; कलाकार (गीत – संगीत – नृत्य – अभिनय, आदि); घर-पहुँच ग्रंथालय; सूचना प्रदानकर्ता; गाँव एवं पंचायतों के अतिविशिष्ट मामलों के समाधानकर्ता; अपरिग्रह, निर्लिप्तता आदि के…
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हमारे प्रयास और ईश्वरीय हस्तक्षेप (भाग २)
(इस आलेख का प्रथम भाग पढने के लिए https://saarthaksamvaad.in/hamare-prayas-aur-ishwariya-part1/ पर क्लिक करें। कुछ दिनों पहले, मैं एक बहुत बढ़िया फिल्म देख रहा था। उसमें कलाकारों ने अद्भुत अभिनय किया था और निर्देशन भी उत्कृष्ट था। अभिनय वास्तव में एक अद्भुत कला है। जब किसी मँझे हुए कलाकार से अभिनय हो रहा होता है, तो उसके…
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हमारे प्रयास और ईश्वरीय हस्तक्षेप (भाग – 1)
पढिए श्रेष्ठ सर्जन हेतु कलाकार (अथवा साधक) के प्रयासों की दिशा के औचित्य को दर्शाता हुआ लेख – हमारे प्रयास और ईश्वरीय हस्तक्षेप श्री अनिल मैखुरी जी की कलम से।
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भिक्षावृत्ति के पुनर्जागरण को लेकर एक संन्निष्ठ प्रयास
कहा जाता है, कि भारत में गुरुकुलों में fees नहीं हुआ करती थी और दुनिया भर के विद्यार्थी अध्ययन हेतु भारत में आते थे, तो गुरुकुलों का निर्वाह कैसे होता होगा??? इसी विषय पर अहमदाबाद स्थित *पुनरुत्थान विद्यापीठ* के द्वारा पुनर्जीवित की गई *भिक्षा परंपरा* का वर्णन यहाँ *आशुतोष जानी* की कलम से प्रस्तुत किया…
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सोचना और करना
एक है ‘सोचना’। दूसरा है ‘विषय’। हम जब भी सोचते हैं, तो उसका कोई संदर्भ होता है; उसे ही विषय कहा जा रहा है। यहाँ हम सोचने की प्रक्रिया और उसके पीछे की दृष्टि को देखने का प्रयास कर रहे हैं। इस परिप्रेक्ष्य में जिस विषय या संदर्भ में सोचा जा रहा है, वह महत्त्वपूर्ण…
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स्वाति जल २०२४
आज एक महत्त्वपूर्ण सूचना सार्थक संवाद के माध्यम से आप तक प्रेषित करना आवश्यक है, अत: उत्तर कर्नाटक स्थित यादगुड़ गांव के आयुर्वेदाचार्य डॉ चंद्रकांत देसाई जी द्वारा लिखित स्वाति नक्षत्र के वर्षा जल से संबंधित एक संक्षिप्त लेख प्रस्तुत किया जा रहा है। डॉ चंद्रकांत देसाई वर्षों से स्वाति जल का अलग अलग विधियों…
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सहज दृष्टा
जिन्हें भी हम स्वयं को समझने के लिए या संसार को समझने के लिए आदर्श मानते हैं उनमें जे. कृष्णमूर्ति, रमण महर्षि, ओशो आदि या विपश्यना, उपनिषद, वेद आदि शामिल हैं, वे सभी किसी ना किसी रूप में दृष्टा की बात ही करते हैं। जे. कृष्णमूर्ति उसे बिना अपने किसी पूर्वाग्रह के और उससे महत्त्वपूर्ण…
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