Month: November 2020

  • गरीबी के इतिहास में छिपी समृद्धि की अर्थव्यवस्था (भाग ३/३)

    आस्था भारद्वाज रुपेश पाण्डेय भाग २ को यहाँ पढ़ें। आज जो हालात है, उसमें हमें अपने बारे में अपने तरीके से सोचने की जरूरत है, जिसके लिए जरुरी है, कि हम देश को बाजार और मानव को उपभोक्ता समझने की नीति से बाहर निकलें। भारत के बारे में कहा जाता रहा है, कि यह गाँव में…

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  • गरीबी के इतिहास में छिपी समृद्धि की अर्थव्यवस्था (भाग २/३)

    आस्था भारद्वाज  रुपेश पाण्डेय भाग १ को यहाँ पढ़ें। आक्रमणकारी मुगलों के साथ आये ‘गरीब’ ने लम्बे कालखंड में निर्धनता को बहिष्कृत कर उसका स्थान लिया, जिसे अंग्रेजी सत्ता ने संस्थागत रूप प्रदान किया। भारत की वर्तमान गरीबी के स्रोत के रूप में हमें 18वीं सदी में बंगाल में आये अकाल को याद रखने की जरूरत है। 1778 में ब्रिटेन के…

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  • गरीबी के इतिहास में छिपी समृद्धि की अर्थव्यवस्था (भाग १/३)

    आस्था भारद्वाजरुपेश पाण्डेय भारत में आज जो गरीबी दिख रही है, उसका एक इतिहास है। ठीक वैसे ही, जैसे गरीब शब्द का। गरीबी को परिभाषित करने वाला यह शब्द, आज हिंदी शब्दकोष में भले ही अपना स्थान बना चुका है, लेकिन यह मूल हिंदी का शब्द नहीं है। भारत से हज़ारों किमी. दूर अरब से…

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  • दीवाली – सभ्यता का त्योहार

    दीवाली – सभ्यता का त्योहार

    ढेरों जानकारियाँ होने के बाद भी इस बात का पूरा अहसास गाँव में रहकर ही हो पाया, कि कैसे दीपावली जैसे ढेरों त्योहार किसी धर्म, पन्थ, आदि के न होकर हमारी ‘सभ्यता’ के त्योहार रहे हैं।हमारी सभ्यता में ‘घर’ का मतलब ही ‘मिट्टी, लकड़ी, आदि से बना घर’ होता है, जो न केवल पूर्णतः प्राकृतिक…

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  • Bharathiya – Non-Translatable words: Part 5

    Bharathiya – Non-Translatable words: Part 5

    31. Parampara (परम्परा): The word Parampara is usually translated as tradition. Tradition has its roots in the French word Tradere which is to transmit or to hand over or to give for safekeeping; further it is also associated with being passed on from one generation to the next in a family or society. Parampara has…

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  • The Beautiful Tree – शिक्षा के औपनिवेशिक आख्यान को समझाती पुस्तक (भाग ३-४/४)

    The Beautiful Tree – शिक्षा के औपनिवेशिक आख्यान को समझाती पुस्तक (भाग ३-४/४)

    धर्मपाल की भाषा आरोप मढ़ने वाली भाषा नहीं है। वे जब भी ब्रिटिश शासन का उल्लेख करते हैं तो न के बराबर व्यक्तिगत होते हैं। उनकी भाषा एक सावधानीपूर्ण प्रयोग से युक्त है। यही बात उन्हें दूसरी धाराओं से जुदा करती है। इसके मूल उनके गांधीवादी चिंतन में हैं। गांधीजी सम्भवतः सबसे ताकतवर ढंग से…

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