आधुनिक (पाश्चात्य) विज्ञान विकासशील विज्ञान है, जो किसी प्रस्थापित तथ्य को गलत सिद्ध करके नया तथ्य प्रस्थापित करता है, हो सकता है, उसी तथ्य को कुछ समय बाद गलत सिद्ध करके किसी और तथ्य को प्रस्थापित किया जाए।

अर्थात् आधुनिक विज्ञान सतत परिवर्तनशील है।

आज हमारे यहाँ जितना भी परंपराओं के दस्तावेजीकरण का कार्य चल रहा है, वह परंपराओं को वैज्ञानिकता की कसौटी के ऊपर कसकर वैज्ञानिक परंपराओं को सही और अवैज्ञानिक परंपराओं को गलत सिद्ध करने भर का रह गया है।

समस्या ये है, कि आज हम एक परंपरा को गलत कह देते हैं, तो कल उसी को सही कहना पड़ता है। कोयले, नीम, नमक से दाँत साफ करना कभी अवैज्ञानिक तो कभी वैज्ञानिक बन जाता है।

ये समस्याएँ उठती हैं, क्योंकि हम भारतीय व्यवस्थाओं की कसौटियों को समझ नहीं पाते, जो (पाश्चात्य) वैज्ञानिकता मात्र से बहुत बड़ी है।

पढ़िए वैज्ञानिकता के आधार पर परंपराओं की स्वीकृति – अस्वीकृति की प्रक्रिया की क्षतियाँ व उसके विकल्प आशीष कुमार गुप्ता जी की कलम से परंपरा और विज्ञान के भाग २ में।

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कभी कभी आपको कुछ छोटे छोटे अनुभव बहुत कुछ बता जाते हैं। कुछ किस्से लोगों के मन मस्तिष्क में चल रहे विचारों की गाथा सुना जाते हैं।

स्व. किशनसिंह चावड़ा जब एक बार ट्रेन से अहमदाबाद से वडोदरा जा रहे थे, तब उन्हें दो अनूठे अनुभव हुए, जो नीतिमत्ता के दो पहलुओं को मुखर कर देते हैं।

ना कोई उपदेश, ना कोई भारी भरकम भाषा, बस एक ही यात्रा में घटी दो घटनाओं का विवरण – कहीं न कहीं आपको सरलता, सहजता, न्यायप्रियता और सहज आनंद की यात्रा करा जाते हैं।

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