Category: Hindi Articles
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भारत एक उद्योग-प्रधान देश – २
गतांक से आगे… जिस तरह का प्रोत्साहन एवं सहयोग-तंत्र कृषि क्षेत्र के लिए कार्य कर रहा है, लगभग उतना ही, बल्कि उससे भी विशाल प्रोत्साहन एवं विस्तृत सहयोग-तंत्र देश में बड़े उद्योगों एवं समाज में औद्योगीकरण को बढ़ावा देने के लिए कार्य कर रहा है। कृषि क्षेत्र में स्थापित एक स्वतंत्र कृषि मंत्रालय की ही…
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भारत एक उद्योग-प्रधान देश – १
भारत एक ‘कृषि-प्रधान’ देश है, ऐसा हम सबको पढ़ाया गया है। परंतु, ऐसा कभी रहा नहीं है। गुरूजी (रवीन्द्र शर्मा जी) की दृष्टि से देखने पर भारत हमेशा से एक ‘उद्योग-प्रधान’ देश ही रहा है। यहाँ की ग्रामीण अर्थव्यवस्था जरूर कृषि-प्रधान रही है। यहाँ का घर-घर एक कारखाना था। पूरा देश कारीगरी प्रधान देश था।…
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भारत का साधारण ही श्रेष्ठ होता था
भारत में कभी साधारण ही श्रेष्ठ हुआ करते थे। आम कारीगर अपना मालिक था, किसी के मातहत काम नहीं करता था और ये कारीगर उन जातियों से होते थे जिन्हें आज हमने पिछड़े और दलित की श्रेणी में डाल दिया है। यहाँ की समृद्धि जिसे पश्चिम के अर्थशास्त्र के इतिहासकार ऊंचे दर्जे की मानते थे,…
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आत्म-संकोच
अपनी बोली में लिखने का मज़ा ही कुछ और है। कितनी सहजता अपने आप आ जाती है। अँग्रेजी ने कितना कबाड़ा किया है – दिमाग का, सोच का, दृष्टि का, सोचने के ढंग का – इसका मूल्यांकन होना अभी बहुत दूर की बात है। जो थोड़े से लोग (इनकी संख्या तेजी से बढ़ती जा रही…
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‘लॉक-डाउन’ का भविष्य
भारत सहित विश्व के अन्य देशों के देशवासी भी ‘लॉक-डाउन’ को लेकर लगातार कयास लगा रहे हैं। सभी के समक्ष यह चिंता और चिंतन, दोनों का विषय है कि इसका भविष्य क्या होगा? लॉक-डाउन के इस निकटवर्ती भविष्य के विषय में तो नहीं, पर इसके दूरगामी भविष्य को लेकर कोई सन्देह नहीं होना चाहिए। ‘लॉक-डाउन’,…
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संविधान और विधान
हमारे मित्रगण संविधान को बहुत ऊंचा स्थान देते हैं। देना भी चाहिए। आधुनिक राष्ट्र राज्य व्यवस्था उसी के सहारे चलती है।पर ये मित्र गांधी जी का नाम भी बड़ी श्रद्धा और भक्ति से लेते हैं। एक किस्सा याद आ गया। चम्पारण मैं धारा 144 लगी थी। गांधी जी को पकड़ कर कोर्ट में पेश किया…
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कथा की कहानी…
बचपन में कथा सुनाने के लिए बड़े बूढ़ों से जिद करना एक आम बात है। हम सब उस भाग्यशाली पीढ़ी के भाग हैं, जिन्होंने दादी-नानी से किस्से कहानियां सुनी है। गर्मी के मौसम में आंगन में खुले आसमान के नीचे माई (हमलोग दादी को माई ही कहते थे) से कथा सुनाने की ज़िद में जीत…
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गाँव कहता है…
मैं गाँव हूँ, मैं वही गाँव हूँ जिस पर ये आरोप है कि यहाँ रहोगे तो भूखे मर जाओगे। मैं वही गाँव हूँ जिस पर आरोप है कि यहाँ अशिक्षा रहती है।
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विज्ञानासुर
आजकल फेसबुक, व्हाट्सएप, आदि सोशल मीडिया के माध्यम से जहाँ-तहाँ के फोटो, वीडियो लगातार मिल रहे हैं कि कैसे आकाश नीला और साफ़ दिखाई देने लगा है। लोग रात में तारों को आँखों से सीधे देख पा रहे हैं। कई-कई स्थानों से सैकड़ों किलोमीटर दूर स्थित हिमालय और अन्य पर्वत शृंखलाओं के दर्शन हो रहे…
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हमारी स्वयं की समझ?
1750 में अंग्रेज़ और पश्चिम के अन्य आर्थिक इतिहासकारों के अनुसार भारतवर्ष दुनिया के कुल गैर कृषि उत्पाद का 24.5 से लेकर 33% उत्पादन करता था। यह लगभग निर्विवाद है। बहस 24.5 और 33 के बीच की है। Huntington की बहुचर्चित पुस्तक A Clash of Civilisation मैं 33% वाला आंकड़ा है। माने 1750 तक भी…
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