Category: Hindi Articles
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अर्थ से शब्द की ओर (३/३)
भाग – २ पढ़ने के लिए यहाँ click करें। स्थानीय परिवेश से शिक्षण के हमारे प्रयोग से हमने पाया, कि बच्चे पढ़ा – लिखा होने और शिक्षित होने के भेद को समझ पाये। उनके बुजुर्ग – जिनको वे अनपढ़ होने की वजह से, एक तरफ उन्हें तिरस्कार की नज़र से देखते थे और दूसरी तरफ…
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अर्थ से शब्द की ओर (२/३)
भाग – १ पढ़ने के लिए यहाँ click करें। हमारी ग्रामीण महिलाएँ इसी बीमारी को या इसी दोष को अपने अंदाज़ में हमें बता रही थी, जब उन्होंने कहा “उन्हें होना सिखाओ, दिखना/ दिखाना नहीं”। हमारे लिए तो यह एक मंत्र भी और सूत्र भी जैसा बन गया, जिसने आगे की हर दिशा का मार्गदर्शन…
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अर्थ से शब्द की ओर (१/३)
आज से करीब 30 वर्ष पहले पहाड़ के दूर दराज़ के गाँवों में, गाँव के लोगों के अनुरोध पर, हमने स्कूल खोले। उस समय औसतन 7-10 गाँवों के बीच एक सरकारी स्कूल हुआ करता था। पहाड़ के गाँव छोटे- छोटे और बिखरे हुए होते हैं। एक गाँव से दूसरे गाँव की दूरी तय करने में…
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धरमपाल जी की चिंता: सहजता और आत्म विश्वास कैसे लौटे
यह धरमपाल जी का शताब्दी वर्ष है। जगह जगह छोटे बड़े कार्यक्रम हो रहे हैं। अभी 19 तारीख को धर्मपाल जी के जन्मदिवस पर प्रधानमंत्री ने शांति निकेतन, बंगाल में दिये अपने एक भाषण में शिवाजी जयंती (जो उसी दिन पड़ती है) के साथ धर्मपाल जी के शोध का कुछ विस्तार से ज़िक्र भी किया।…
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संस्कारों द्वारा पोषित हमारी अपनी सामाजिक (अर्थ)व्यवस्था (भाग ३/३)
भाग २ पढ़ने के लिए यहाँ click करें। समाज में सामाजिकता को पोषित करना: 49 संस्कारों वाली व्यवस्था को समाज में लागू करने का दूसरा सबसे बड़ा उद्देश्य समाज में सामाजिकता को पोषित करना रहा है। हमारे 49 संस्कार, संस्कार मात्र न होकर मानव जीवन के महत्त्वपूर्ण पड़ाव रहे हैं। गर्भाधान, वस्त्र धारण, अन्न प्राशन,…
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संस्कारों द्वारा पोषित हमारी अपनी सामाजिक (अर्थ) व्यवस्था (भाग २/३)
भाग १ पढ़ने के लिए यहाँ click करें। कारीगरों को इसी तरह का एक और पक्का मार्केट देने के उद्देश्य से समाज में 49 संस्कारों वाली एक अनूठी अर्थव्यवस्था लागू की गई थी। इन सभी 49 संस्कारों में हर कारीगर की, एक से लेकर पाँच (बिना जरूरत की) चीजें खरीदने की व्यवस्था की गई थी…
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संस्कारों द्वारा पोषित हमारी अपनी सामाजिक (अर्थ) व्यवस्था (भाग १/३)
हमारी लगभग सभी परम्पराओं के पीछे एक धार्मिक दृष्टि होने के साथ-साथ कुछ अन्य मूल कारण रहे हैं, जिन्हें समाज ने धार्मिकता के माध्यम से समाज में लागू किया है। इन महत्त्वपूर्ण कारणों में अर्थव्यवस्था का सुचारूपन, समाज में सामाजिकता का उत्तरोत्तर विकास, उस परम्परा का शारीरिक / आयुर्वेदीय महत्त्व, प्रकृति के साथ सामन्जस्य एवं…
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क्या आयुर्वेद वस्तुतः कोई गुप्त या गोपनीय शास्त्र है? (भाग २/२)
पारंपरिेक शोध की जहाँ तक गोपनीयता का प्रश्न है यह आरोप बेबुनियाद है। वास्तविकता यह है, कि एक वैद्य देश, काल, पात्र एवं रोग के अनुरूप औषध रचना में कितना दक्ष है यह उसके अनुभूत योग से प्रकट होता था। अनुभूत स्वतंत्र योगों का पहले चिकित्सकों के बीच आदान-प्रदान होता था। बाद में जब कोई…
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क्या आयुर्वेद वस्तुतः कोई गुप्त या गोपनीय शास्त्र है? (भाग १/२)
आयुर्वेद के विषय में एक विचित्र आरोप-प्रत्यारोप चलता रहा है। यह वैसा ही आरोप है, जैसा आज से पचास – सौ वर्ष पहले योग एवं तंत्र पर लगा करता था और आज भी लगा करता है, जैसे कि; आयुर्वेद के ग्रंथ गोपनीयता की वकालत करते हैं। वैद्य अपनी विद्या को गुप्त रखते हैं। अनेक वैद्य…
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‘सहयोग’ आधारित ग्राम की समृद्धि-व्यवस्था (भाग 3/3)
‘ऋण का भाव’ पैदा करने वाली व्यवस्था: समाज में हर तरह के काम के लिए ‘सहयोग की अर्थव्यवस्था’ ही व्याप्त रही है, जिसके माध्यम से समाज में एक तरह के ‘मानस निर्माण’ जैसे बहुत से उद्देश्य स्वतः ही सधते रहे हैं। पूरी व्यवस्था में एक-दूसरे के प्रति बनाई गई ‘परस्पर निर्भरता’ और ‘आपसी सहयोग’ का…
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