Month: June 2020

  • Possibilities of Discovery

    Possibilities of Discovery

    It appears to me that many of today’s social issues which look unsolvable, have become so because of the political system within which we are seeking answers. Let us take together the three issues of the Jallikattu (bull taming ceremony) in Tamil Nadu, the Dahi-handi during Gokulashtami in Maharashtra, and the Kaveri river-sharing tussle between…

    Read More

    //

  • भारत की आत्मा

    भारत की आत्मा

    प्रवचन: आश्रम में प्रार्थना के बाद मिल मजदूरों के साथ –  (मार्च 17, 1918) (गांधीजी का यह प्रवचन अत्यंत महत्वपूर्ण है। अहमदाबाद के मिल मजदूरों की हड़ताल के बाफी दिनों बाद गांधीजी अनशन पर बैठने का निर्णय लेते हैं। यह निर्णय उनके लिए काफी दुविधा उत्पन्न करता है। इस दुविधा को वे इस प्रवचन में…

    Read More

    //

  • बच्चे प्रदर्शन की वस्तु नहीं हैं

    बच्चे प्रदर्शन की वस्तु नहीं हैं

    अभी हाल ही में अपने दिल्ली प्रवास के दौरान अपने एक पुराने मित्र के घर जाने का अवसर प्राप्त हुआ। तमाम औपचारिकताओं के दौरान उन्होनें अपने ढाई साल के बच्चे का परिचय कराया। परिचय और साधारण सी होने वाली बातचीत जल्द ही बच्चे के विविध सूचना रूपी सीख एवं कला के प्रस्तुति और प्रदर्शन में…

    Read More

    //

  • Black Money, White Economics

    I sometimes wonder about the colour coding of currency: why legitimate money is ‘white’ money and illegitimately acquired money is ‘black’ money, even though we Indians are legitimately brown and black, and the colonizing chaps who came here as thieves and robbers were ‘white’! But this blog is not about racial language. What I would…

    Read More

    //

  • साधारण, श्रेष्ठता और आस्था

    साधारण, श्रेष्ठता और आस्था

    गांधी जी की ‘साधारण’ एवं ईश्वर में आस्था, अनुभव और तर्क दोनों पर आधारित थी। साधारण, कोई व्यक्ति विशेष नहीं हुआ करता, बल्कि “साधारण” का सामूहिक (collective) पक्ष ही महत्वपूर्ण है। महात्मा गांधी के लिए इसमें ही भारत की सभ्यता का उज्ज्वल पक्ष झलकता था। यह साधारण कैसे अपने निर्णय लेता है रोजमर्रा की ज़िंदगी…

    Read More

    //

  • भारत एक उद्योग-प्रधान देश – २

    भारत एक उद्योग-प्रधान देश – २

    गतांक से आगे… जिस तरह का प्रोत्साहन एवं सहयोग-तंत्र कृषि क्षेत्र के लिए कार्य कर रहा है, लगभग उतना ही, बल्कि उससे भी विशाल प्रोत्साहन एवं विस्तृत सहयोग-तंत्र देश में बड़े उद्योगों एवं समाज में औद्योगीकरण को बढ़ावा देने के लिए कार्य कर रहा है। कृषि क्षेत्र में स्थापित एक स्वतंत्र कृषि मंत्रालय की ही…

    Read More

    //

  • भारत एक उद्योग-प्रधान देश – १

    भारत एक उद्योग-प्रधान देश – १

    भारत एक ‘कृषि-प्रधान’ देश है, ऐसा हम सबको पढ़ाया गया है। परंतु, ऐसा कभी रहा नहीं है। गुरूजी (रवीन्द्र शर्मा जी) की दृष्टि से देखने पर भारत हमेशा से एक ‘उद्योग-प्रधान’ देश ही रहा है। यहाँ की ग्रामीण अर्थव्यवस्था जरूर कृषि-प्रधान रही है। यहाँ का घर-घर एक कारखाना था। पूरा देश कारीगरी प्रधान देश था।…

    Read More

    //