Category: All Articles

  • साधारण, श्रेष्ठता और आस्था

    साधारण, श्रेष्ठता और आस्था

    गांधी जी की ‘साधारण’ एवं ईश्वर में आस्था, अनुभव और तर्क दोनों पर आधारित थी। साधारण, कोई व्यक्ति विशेष नहीं हुआ करता, बल्कि “साधारण” का सामूहिक (collective) पक्ष ही महत्वपूर्ण है। महात्मा गांधी के लिए इसमें ही भारत की सभ्यता का उज्ज्वल पक्ष झलकता था। यह साधारण कैसे अपने निर्णय लेता है रोजमर्रा की ज़िंदगी…

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  • भारत एक उद्योग-प्रधान देश – २

    भारत एक उद्योग-प्रधान देश – २

    गतांक से आगे… जिस तरह का प्रोत्साहन एवं सहयोग-तंत्र कृषि क्षेत्र के लिए कार्य कर रहा है, लगभग उतना ही, बल्कि उससे भी विशाल प्रोत्साहन एवं विस्तृत सहयोग-तंत्र देश में बड़े उद्योगों एवं समाज में औद्योगीकरण को बढ़ावा देने के लिए कार्य कर रहा है। कृषि क्षेत्र में स्थापित एक स्वतंत्र कृषि मंत्रालय की ही…

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  • भारत एक उद्योग-प्रधान देश – १

    भारत एक उद्योग-प्रधान देश – १

    भारत एक ‘कृषि-प्रधान’ देश है, ऐसा हम सबको पढ़ाया गया है। परंतु, ऐसा कभी रहा नहीं है। गुरूजी (रवीन्द्र शर्मा जी) की दृष्टि से देखने पर भारत हमेशा से एक ‘उद्योग-प्रधान’ देश ही रहा है। यहाँ की ग्रामीण अर्थव्यवस्था जरूर कृषि-प्रधान रही है। यहाँ का घर-घर एक कारखाना था। पूरा देश कारीगरी प्रधान देश था।…

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  • भारत का साधारण ही श्रेष्ठ होता था

    भारत का साधारण ही श्रेष्ठ होता था

    भारत में कभी साधारण ही श्रेष्ठ हुआ करते थे। आम कारीगर अपना मालिक था, किसी के मातहत काम नहीं करता था और ये कारीगर उन जातियों से होते थे जिन्हें आज हमने पिछड़े और दलित की श्रेणी में डाल दिया है। यहाँ की समृद्धि जिसे पश्चिम के अर्थशास्त्र के इतिहासकार ऊंचे दर्जे की मानते थे,…

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  • Atma-nirbharta, the Local way

    Atma-nirbharta, the Local way

    There is an alternate voice in this country, and in other parts of the world, which questions the assumptions and systems of modern globalised society. This voice has been speaking for a long time in favour of the local and of strengthening the local community.

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  • आत्म-संकोच

    अपनी बोली में लिखने का मज़ा ही कुछ और है। कितनी सहजता अपने आप आ जाती है। अँग्रेजी ने कितना कबाड़ा किया है – दिमाग का, सोच का, दृष्टि का, सोचने के ढंग का – इसका मूल्यांकन होना अभी बहुत दूर की बात है। जो थोड़े से लोग (इनकी संख्या तेजी से बढ़ती जा रही…

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  • ‘लॉक-डाउन’ का भविष्य

    ‘लॉक-डाउन’ का भविष्य

    भारत सहित विश्व के अन्य देशों के देशवासी भी ‘लॉक-डाउन’ को लेकर लगातार कयास लगा रहे हैं। सभी के समक्ष यह चिंता और चिंतन, दोनों का विषय है कि इसका भविष्य क्या होगा? लॉक-डाउन के इस निकटवर्ती भविष्य के विषय में तो नहीं, पर इसके दूरगामी भविष्य को लेकर कोई सन्देह नहीं होना चाहिए। ‘लॉक-डाउन’,…

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  • कथा की कहानी…

    कथा की कहानी…

    बचपन में कथा सुनाने के लिए बड़े बूढ़ों से जिद करना एक आम बात है। हम सब उस भाग्यशाली पीढ़ी के भाग हैं, जिन्होंने दादी-नानी से किस्से कहानियां सुनी है। गर्मी के मौसम में आंगन में खुले आसमान के नीचे माई (हमलोग दादी को माई ही कहते थे) से कथा सुनाने की ज़िद में जीत…

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  • गाँव कहता है…

    मैं गाँव हूँ, मैं वही गाँव हूँ जिस पर ये आरोप है कि यहाँ रहोगे तो भूखे मर जाओगे। मैं वही गाँव हूँ जिस पर आरोप है कि यहाँ अशिक्षा रहती है।

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  • We need Wisdom, not Civilisation

    We need Wisdom, not Civilisation

    Many years ago, at a village meeting in Garhwal, a colleague pulled out some pictures from typical garment advertisements and asked the audience what they could tell about the men in the pictures simply by looking at them.

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