Category: Hindi Articles
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The Beautiful Tree – शिक्षा के औपनिवेशिक आख्यान को समझाती पुस्तक (भाग १/४)
भूमिका: भारतीय शिक्षा भारतीय समाज से विच्छिन्न परिघटना नहीं है। शिक्षा समाज के लिए और समाज के भीतर ही होती है। अतः भारतीय शिक्षा के स्वरूप को भारतीय समाज के स्वरूप से तोड़कर देखना जानना संभव नहीं है। भारतीय शिक्षा पद्धति के सिलसिले में आधुनिक चिंतन धाराओं द्वारा की जाने वाली आलोचना दरअसल उस वक़्त…
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महात्मा गांधी की सभ्यता दृष्टि
गांधी जी के सभ्यतागत विचारों को जानने की दृष्टि से सीधे-सीधे एक लाइन में कहा जाय तो कह सकते हैं कि हिंद स्वराज को पढ़ लेना चाहिए। जिसमें गांधी जी ने पश्चिमी (ईसाई) सभ्यता को शैतानी सभ्यता घोषित किया है और उसकी अनुगामी संसदीय लोकतंत्र प्रणाली की बांझ और वैश्या से तुलना की है। हिंद…
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भारत का आत्म-संकोच
हमारा देश आत्म-संकोची हो गया है। हम लोग खुल कर अपने अंदर की बात आसानी से नहीं कर पाते। जिस माहौल में होते हैं, वहाँ के मुहावरे और वहाँ जो चलता है, उसका अनुमान पहले लगाते हैं, हिसाब- किताब लगाते हैं और फिर बोलते हैं। इसे भले ही कुछ लोग समझदारी कहें, पर इसमे डर…
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बी एच यू और काशी – २
बीएचयू तो काशी का एक हिस्सा है, पर एक अद्भूत इंसान की वजह से थोड़ा बहुत वाराणसी भी घूमना हुआ और कुछ गुणी सज्जनों से मिलना भी। इसकी वजह बने डॉक्टर कृष्ण कान्त शुक्ल – अमरिका में कई वर्ष Physics और खगोल शास्त्र पढ़ाने के बाद संगीत को अपना बना लिया, Physics छूट गई, या…
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बी एच यू और काशी – १
यह लेख सन 2016 में लिखा गया था। हर बार की तरह इस बार भी बनारस आकर मन प्रफुल्लित हो गया। पता नहीं, अब तो मैंने विश्लेषण करना भी छोड़ दिया है, कि ऐसा क्या है यहाँ, यहाँ के लोगों में, हवा में, बोली में, यहाँ की बेपरवाही में, बेतरतीबी में, यहाँ की गंगा में,…
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धर्म और हमारा साधारण समाज: भारतीय ग्राम व्यवस्था का सैद्धान्तिक आधार
इस ज़माने में क्या काम करने योग्य है और उस काम को कैसे किया जाय? ये दो महत्त्वपूर्ण प्रश्न हैं। ऐसा सुना है कि लगभग १०० वर्ष पूर्व लेनिन ने भी ये दो प्रश्न पूछे थे – what is to be done और how it is to be done। इन प्रश्नों के उत्तर भी उन्होंने…
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प्रकृति का साथ और पर्यावरण की बात
प्रकृति का साथ और पर्यावरण की बात दोनों अलग-अलग चीजें हैं। विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर भारत ही नहीं दुनिया भर में पर्यावरण बचाने की तमाम बातें होंगी, लेकिन प्रकृति के साथ जीने की बात नहीं होगी, क्योंकि प्रकृति के साथ जीने की बात करने वाले को वैसा जीकर स्वयं अनुभव कर के ही बात कहनी…
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भारत की आत्मा
प्रवचन: आश्रम में प्रार्थना के बाद मिल मजदूरों के साथ – (मार्च 17, 1918) (गांधीजी का यह प्रवचन अत्यंत महत्वपूर्ण है। अहमदाबाद के मिल मजदूरों की हड़ताल के बाफी दिनों बाद गांधीजी अनशन पर बैठने का निर्णय लेते हैं। यह निर्णय उनके लिए काफी दुविधा उत्पन्न करता है। इस दुविधा को वे इस प्रवचन में…
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बच्चे प्रदर्शन की वस्तु नहीं हैं
अभी हाल ही में अपने दिल्ली प्रवास के दौरान अपने एक पुराने मित्र के घर जाने का अवसर प्राप्त हुआ। तमाम औपचारिकताओं के दौरान उन्होनें अपने ढाई साल के बच्चे का परिचय कराया। परिचय और साधारण सी होने वाली बातचीत जल्द ही बच्चे के विविध सूचना रूपी सीख एवं कला के प्रस्तुति और प्रदर्शन में…
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साधारण, श्रेष्ठता और आस्था
गांधी जी की ‘साधारण’ एवं ईश्वर में आस्था, अनुभव और तर्क दोनों पर आधारित थी। साधारण, कोई व्यक्ति विशेष नहीं हुआ करता, बल्कि “साधारण” का सामूहिक (collective) पक्ष ही महत्वपूर्ण है। महात्मा गांधी के लिए इसमें ही भारत की सभ्यता का उज्ज्वल पक्ष झलकता था। यह साधारण कैसे अपने निर्णय लेता है रोजमर्रा की ज़िंदगी…
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