Category: Hindi Articles
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‘सहयोग’ आधारित ग्राम की समृद्धि-व्यवस्था (भाग 2/3)
(गुरुजी श्री रवीन्द्र शर्मा जी के साथ की बातचीत के आधार पर) ‘धन के हस्तांतरण’ के विभिन्न प्रकारों वाली व्यवस्था: जिस तरह हमारे समाज में ‘धन’ के ढेर सारे स्वरूप थे, उसी तरह हमारे समाज में धन के एक हाथ से दूसरे हाथ तक हस्तांतरण के भी बहुत सारे तरीके हुआ करते थे। आजकल तो…
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‘सहयोग’ आधारित ग्राम की समृद्धि-व्यवस्था (भाग 1/3)
(गुरुजी श्री रवीन्द्र शर्मा जी के साथ की बातचीत के आधार पर) सामाजिक अर्थशास्त्र के एक महत्वपूर्ण घटक के रूप में हमारे समाज में वर्तमान आधुनिक समाज की तरह ‘धन की अर्थव्यवस्था’ न होकर ‘सहयोग की अर्थव्यवस्था’ रही है। जिस तरह आजकल समाज में ‘पैसों’ के बिना एक पत्ता तक नहीं हिल सकता, उसी तरह…
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भारत की समझ
भारत एक विशाल एवं विविधतापूर्ण देश है। यहाँ की संस्कृति भी अपने प्रकार की अलग ही है, जो विविधताओं से भरी है, फिर भी उन विविधताओं के बीच घनिष्ठ आत्मीय संबंध हैं। जैन और बौद्ध तो यहीं के हैं। इस संसार, ब्रह्मांड या जिसे अंग्रेजी में कॉस्मोस कहा जाता है, उसके बारे में सनातनी, जैन…
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गरीबी के इतिहास में छिपी समृद्धि की अर्थव्यवस्था (भाग ३/३)
आस्था भारद्वाज रुपेश पाण्डेय भाग २ को यहाँ पढ़ें। आज जो हालात है, उसमें हमें अपने बारे में अपने तरीके से सोचने की जरूरत है, जिसके लिए जरुरी है, कि हम देश को बाजार और मानव को उपभोक्ता समझने की नीति से बाहर निकलें। भारत के बारे में कहा जाता रहा है, कि यह गाँव में…
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गरीबी के इतिहास में छिपी समृद्धि की अर्थव्यवस्था (भाग २/३)
आस्था भारद्वाज रुपेश पाण्डेय भाग १ को यहाँ पढ़ें। आक्रमणकारी मुगलों के साथ आये ‘गरीब’ ने लम्बे कालखंड में निर्धनता को बहिष्कृत कर उसका स्थान लिया, जिसे अंग्रेजी सत्ता ने संस्थागत रूप प्रदान किया। भारत की वर्तमान गरीबी के स्रोत के रूप में हमें 18वीं सदी में बंगाल में आये अकाल को याद रखने की जरूरत है। 1778 में ब्रिटेन के…
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गरीबी के इतिहास में छिपी समृद्धि की अर्थव्यवस्था (भाग १/३)
आस्था भारद्वाजरुपेश पाण्डेय भारत में आज जो गरीबी दिख रही है, उसका एक इतिहास है। ठीक वैसे ही, जैसे गरीब शब्द का। गरीबी को परिभाषित करने वाला यह शब्द, आज हिंदी शब्दकोष में भले ही अपना स्थान बना चुका है, लेकिन यह मूल हिंदी का शब्द नहीं है। भारत से हज़ारों किमी. दूर अरब से…
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दीवाली – सभ्यता का त्योहार
ढेरों जानकारियाँ होने के बाद भी इस बात का पूरा अहसास गाँव में रहकर ही हो पाया, कि कैसे दीपावली जैसे ढेरों त्योहार किसी धर्म, पन्थ, आदि के न होकर हमारी ‘सभ्यता’ के त्योहार रहे हैं।हमारी सभ्यता में ‘घर’ का मतलब ही ‘मिट्टी, लकड़ी, आदि से बना घर’ होता है, जो न केवल पूर्णतः प्राकृतिक…
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The Beautiful Tree – शिक्षा के औपनिवेशिक आख्यान को समझाती पुस्तक (भाग ३-४/४)
धर्मपाल की भाषा आरोप मढ़ने वाली भाषा नहीं है। वे जब भी ब्रिटिश शासन का उल्लेख करते हैं तो न के बराबर व्यक्तिगत होते हैं। उनकी भाषा एक सावधानीपूर्ण प्रयोग से युक्त है। यही बात उन्हें दूसरी धाराओं से जुदा करती है। इसके मूल उनके गांधीवादी चिंतन में हैं। गांधीजी सम्भवतः सबसे ताकतवर ढंग से…
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The Beautiful Tree – शिक्षा के औपनिवेशिक आख्यान को समझाती पुस्तक (भाग २/४)
धर्मपाल के ब्रिटिशपूर्व भारतसंबंधी कार्य से गुज़रना एक विचित्र संसार में प्रवेश करने जैसा लगता है। इसका एक कारण तो यह कि पुराने भारत संबंधी अधिकतर व्याख्याएँ सांख्यिकीय आंकड़ों से विहीन मात्र भावुक घोषणाओं पर खड़ी रहती हैं या फ़िर पुराने भारत को सामाजिक अंतर्विरोधों के आधार पर कोसने में उत्सुक। ये कोई छिपी हुई…
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धर्मपाल साहित्य परिचय
पिछली दो ढाई शताब्दियों से भारत का साधारण मनुष्य बड़े ही असमंजस से गुजर रहा है। एक ओर उसके संस्कार व उसकी परवरिश है, जो उसे ईश्वर में, सत्य में, धर्म में आस्था रखना सिखाते हैं, काल की चक्रियता को सिखाते हैं, बुरे वक्त में एक दूसरे के काम आना सिखाते हैं, कर भला तो…
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