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  • प्रकृति का साथ और पर्यावरण की बात

    प्रकृति का साथ और पर्यावरण की बात

    प्रकृति का साथ और पर्यावरण की बात दोनों अलग-अलग चीजें हैं। विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर भारत ही नहीं दुनिया भर में पर्यावरण बचाने की तमाम बातें होंगी, लेकिन प्रकृति के साथ जीने की बात नहीं होगी, क्योंकि प्रकृति के साथ जीने की बात करने वाले को वैसा जीकर स्वयं अनुभव कर के ही बात कहनी…

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  • Video Series: Deconstructing Modernity: (x) What is to be done?

    सत्य सामयिक नहीं होता, सत्य सनातन होता है, सब स्थानों पर सब समय में एक जैसा। आधुनिकता ने इस सत्य के अस्तित्व को नकार दिया है, यह बात चलाई जाती है कि सबका अपना अपना सत्य होता है, शाश्वत सनातन जैसा कुछ नहीं। सत्य को भी subjective बना दिया जाता है। सबसे पहले तो हमें…

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  • Video Series: Deconstructing Modernity: (ix) Stepping out of the Modern Paradigm – Swatantrata

    पिछले २०० – २५० वर्षों से मनुष्य को बहिर्मुखी बना दिया गया है, हमारी अपने ऊपर दृष्टि रही ही नहीं है, यदि कभी पड़ती भी है, तो भी केवल self consciousness के स्तर तक ही और वह भी केवल तुलना के माध्यम से। अपने भीतर क्या घटित हो रहा है, उसके उपर किसीका ध्यान ही…

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  • Video Series: Deconstructing Modernity: (viii) Entrapment in Material Realm

    शब्द और अर्थ एकदूसरे से जुड़े हुए हैं। शब्द की सार्थकता अर्थ के सही संप्रेषण में है, शब्द अर्थ के उपर निर्भर करता है। शब्द का स्वतंत्र अस्तित्व नहीं है, जबकि अर्थ स्वयं में प्रमाणित है, अर्थ का शब्द के उपर आलंबन नहीं है।हमारा पूरा ध्यान अर्थ की दुनिया से हटकर शब्द की दुनिया के…

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  • Video Series- Deconstructing Modernity: Part (vii) Colonial Making of Contemporary Indian Mind

    सन 1824 में कलकत्ता के पास बेरेकपुर में भारतीय सैनिकों ने एक सैन्य विद्रोह किया था, जिससे अंग्रेज़ बहुत ही घबरा गए थे, लेकिन उसके चंद सालों में ही तत्कालीन गवर्नर जनरल विलियम बैंटिक ने लंदन स्थित अपने उच्च अधिकारियों के नाम एक चिठ्ठी लिखी थी, जिसमें उसने लिखा था कि Now there is nothing…

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  • Video Series- Deconstructing Modernity: Part (vi) Civilizational Reliability on Test of Time

    किसी भी क्रिया के त्वरित परिणाम भी हो सकते हैं और दूरगामी भी हो सकते हैं। क्रिया के होते ही त्वरित परिणाम तो दिख जाते हैं, किन्तु दूरगामी असरों को जानने के लिए तो समय के साथ उसकी समीक्षा होती रहनी चाहिए। उदाहरण के तौर पर आज यदि कोई कोरोना की दवाई निकाल कर कहे,…

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  • Video Series- Deconstructing Modernity: Part (v) Newness Seeking

    आधुनिक दिमाग एक भ्रम में जीता है। किसी बड़ी डिग्री वाले ने या किसी बड़े पुरस्कार विजेता ने कुछ कह दिया, तो वह उसे मान लेता है, उससे प्रभावित हो जाता है, अब चाहे वह खुद उस बात को समझता हो या ना हो। ये एक प्रकार की मान्यता है, परंपरा में भी मान्यता का…

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  • Video series: Deconstructing Modernity: Part (iv) – Restlessness

    आधुनिक व्यक्ति के शरीर और मन सदैव गतिशील रहते हैं, स्थिर नहीं रह पाते हैं। यही अनावश्यक गतिशीलता हड़बड़ाहट, थकान और भय को जन्म देती है। स्थिरता के अभाव में वह बड़ी सरलता से किसी से भी प्रभावित होने लगता है और यहीं से वह भय एवम् भ्रम से ग्रसित होने लगता है।

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  • Video Series- Deconstructing Modernity: Part (iii) Civilizational mind and the Unknown

    अलग अलग सभ्यताओं में अलग अलग भाषाएँ अलग अलग बोलियाँ बोली जाती हैं। ये भाषाएँ व बोलियाँ वहाँ की मान्यताओं को, वहां की सोचने समझने की प्रक्रिया को दर्शाती भी हैं व बनाती भी हैं। अंग्रेजी और भारतीय भाषाओं की रचना में व उपयोग में कुछ प्रमुख भेद हैं, ये भेद इन सभ्यताओं की मूलभूत…

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  • Video series: Deconstructing Modernity: Part (ii) Fear of Unknown in Modern Mind

    Deconstructing Modernity शृंखला के भाग – १ में हमने देखा कि कैसे भय का वातावरण सब तरफ खड़ा किया गया है।यहां भय दो प्रकार का है, एक तो कोरोना का भय है और एक भयभीत होने की मनोस्थिति है। दोनों ही तरह के भय से पार पाने की चेष्टा साधारण व्यक्ति की अलग होती है…

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